कोरोना के इलाज में दी जाने वाली फेफड़े की दवा ‘पीरफेनिडोन’ से दिल के रोगियों का इलाज भी किया जा सकेगा। इस दवा को सांस की समस्या के इलाज के लिए तैयार किया गया था। वैज्ञानिक भाषा में इस समस्या को इडियोपैथिक पल्मोनरी फाइब्रोसिस कहते हैं। ऐसी स्थिति में फेफड़ों में छोटे-छोटे धब्बे बनने के कारण सांस लेने में तकलीफ होने लगती है।

 

इस दवा का काफी इस्तेमाल कोविड इंफेक्शन के मरीजों के लिए किया गया। हालिया रिसर्च में यह सामने आया है कि पीरफेनिडोन हार्ट फेल के मरीजों के लिए भी असरदार है। यह दावा मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी NHS फाउंडेशन ट्रस्ट के वैज्ञानिकों ने किया है। वैज्ञानिकों का कहना है, हमनें हार्ट फेल के एक प्रकार HFpEF से जूझने वाले 47 मरीजों को एक साल तक यह दवा दी। एक साल पूरा होने के बाद मरीजों का हार्ट स्कैन किया गया। रिपोर्ट में सामने आया कि हार्ट स्कारिंग यानी हार्ट और मसल्स में होने वाला डैमेज औसतन 1.21 फीसदी तक कम हो गया।

 

वैज्ञानिकों के मुताबिक, हार्ट मसल्ट के डैमेज होने या इनमें फाइब्रोसिस होने पर हार्ट फेल का खतरा बढ़ता है। रिसर्च में सामने आया है कि पीरफेनिडोन दवा इसी प्रोसेस को धीमा करने का काम करती है। स्कैन रिपोर्ट से पता चला है कि ट्रायल के दौरान मरीजों में हार्ट की मसल्स को होने वाला डैमेज पूरी तरह से तो नहीं रुका लेकिन यह प्रक्रिया वाकई में धीमी हो गई।

 

इसे समझने के लिए पहले ये जानना जरूरी है कि हार्ट फेल होने पर होता क्या है। पूरे शरीर में ब्लड को एक खास तरह के दबाव के साथ पहुंचाया जाता है। यह दबाव हार्ट के द्वारा ही पैदा किया जाता है। हार्ट फेल होने की स्थिति में हृदय ब्लड को पंप करना बंद कर देता है। आमतौर पर ऐसा तब होता है जब हार्ट से जुड़ी मसल्स काफी कमजोर हो जाती हैं या अकड़ जाती हैं। इन मसल्स को ही कार्डियक मसल्स कहते हैं।एक्सपर्ट कहते हैं, हार्ट फेल होने के मामले बढ़ रहे हैं। इसकी दो वजह है। पहली, दुनिया में बूढ़ी आबादी का बढ़ना और दूसरा, हार्ट अटैक के मरीज। ऐसे मरीजों के बूढ़े होने पर हार्ट फेल का खतरा बढ़ता है।

 

इसके अलावा ऐसे मरीज जो डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर से जूझ रहे हैं उनमें हार्ट फेल्योर का रिस्क ज्यादा है। यह एक खतरनाक स्थिति है, क्योंकि हार्ट फेल होने पर मरीज के लक्षण तेजी से गंभीर होने लगते हैं। सिर्फ ब्रिटेन में ही हर साल हार्ट फेल होने के 86 हजार मामले हॉस्पिटल में सामने आते हैं। ऐसे मरीजों को तत्काल इमरजेंसी में भर्ती करना पड़ता है। हालत अधिक बिगड़ने पर मरीजों के लिए हार्ट ट्रांसप्लांट की एकमात्र उपाय बचता है। शोधकर्ताओं का कहना है, पिछले 5 सालों में दवाओं की मदद से ऐसे मरीजों को काफी राहत मिली है और 40 फीसदी तक मरीजों के बचने की उम्मीद बढ़ी है।

 

मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी के कंसल्टेंट कार्डियोलॉजिस्ट और शोधकर्ता डॉ. क्रिस मिलर का कहना है, हार्ट स्कारिंग घटने से हॉस्पिटल् में पहुंचने वाले ऐसे मरीजों की संख्या में कमी आती है और मौतों का आंकड़ा घटता है। इसके अलावा पीरफेनिडन से शरीर में पानी इकट्ठा होने दिक्कत में भी सुधार दिखता है।

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