छत्तीसगढ़ के बस्तर में धर्मांतरित बुजुर्ग के शव दफनाने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की डबल बेंच में ही मतभेद हो गया है। दो जजों की राय अलग-अलग राय है। जस्टिस नागरत्ना का कहना है कि, शव को निजी जमीन में दफनाना चाहिए। जबकि जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि, 20-25 किमी दूर ईसाई समुदाय का अलग से कब्रिस्तान है। वहां शव दफन किया जाए। वहीं असहमति के बाद भी मामले को बड़ी बेंच में भेजने से परहेज किया गया है। दरअसल, बस्तर के दरभा ब्लॉक के छिंदावाड़ा के पादरी सुभाष बघेल की मौत के बाद उनकी लाश 7 जनवरी से जगदलपुर मेडिकल कॉलेज के मॉर्च्युरी में रखा गया है। उनके बेटे रमेश बघेल ने शव को निजी जमीन में दफनाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई थी। अंतिम आदेश में कोर्ट ने क्या कहा ? डबल बेंच ने अंतिम आदेश में कहा कि, अपीलकर्ता के पिता के शव के अंतिम संस्कार स्थल को लेकर पीठ के सदस्यों के बीच सहमति नहीं बनी है। इस मामले को हम तीसरे न्यायधीश की पीठ को नहीं भेजना चाहते हैं। क्योंकि, अपीलकर्ता के पिता का शव पिछले तीन सप्ताह से शवगृह में रखा हुआ है। मृतक के शव का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार के लिए अनुच्छेद 142 के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए आदेश जारी कर रहे हैं। जस्टिस बी वी नागरत्ना ने क्या कहा ? जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा कि, ग्राम पंचायत की तरफ से ईसाई समुदाय के लिए कोई स्थान चिन्हित नहीं किया गया है। इसलिए अपीलकर्ता के पास अंतिम विकल्प अपनी निजी भूमि है। ऐसी दलील उचित है। राज्य ने जो सुझाव दिया है उसके अनुसार अपीलकर्ता अपने पिता के शव को करीब 20 से 25 किलोमीटर दूर स्थित करकापाल में दफन करे। हाईकोर्ट को ग्राम पंचायत को निर्देश देकर अपीलकर्ता की तकलीफ को समझना था। ताकि, उसकी निजी भूमि में शव दफनाने की अनुमति दे। ग्राम पंचायत ने अपीलकर्ता के पिता के शव को 24 घंटे के अंदर दफनाने के अपने कर्तव्य को त्याग दिया। इसके बजाय ग्राम पंचायत का पक्ष लिया जा रहा है। अपीलकर्ता को कब्रिस्तान तक पहुंचने से वंचित करना अनुच्छेद 14 और 15 का उल्लंघन है। यह समस्या गांव में ही हल की जा सकती थी। लेकिन इसे अलग रंग दिया गया। राज्य के रुख से यह साबित हो रहा है कि कुछ समुदायों के साथ भेदभाव किया जा सकता है। गांव स्तर और उच्च स्तर पर इस तरह का रवैया धर्मनिरपेक्षता और भाईचारे के सिद्धांतों के साथ विश्वास घात करता है। वहीं, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा ने कहा कि, CG पंचायत नियमों के अनुसार केवल चिन्हित स्थानों पर शव दफनाने की अनुमति दी जा सकती है। इसलिए कोई भी व्यक्ति शव दफनाने को लेकर अपनी पसंद का स्थान नहीं मांग सकता। जानिए क्या है पूरा मामला बता दें कि, बस्तर जिले के दरभा ब्लॉक के छिंदावाड़ा गांव के रहने वाले पादरी सुभाष बघेल (65) की 7 जनवरी 2025 को किसी बीमारी की वजह से मौत हो गई थी। इसके बाद गांव में उनके शव दफनाने को लेकर बवाल हो गया था। वही उनके बेटे रमेश बघेल ने शव को जगदलपुर के मेडिकल कॉलेज में मॉर्च्युरी में रखवा दिया था। विवाद बढ़ता देख उस समय मौके पर पुलिस फोर्स समेत प्रशासन के अधिकारी भी पहुंच गए थे। इसके बाद बेटे ने अपने पिता के शव को गांव में ही दफनाने के लिए हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया था। जिसके बाद बेटे ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की। जहां कोर्ट ने इस घटना को दुखद बताया और राज्य सरकार से भी जवाब मांगा था। ……………………………………………. इससे संबंधित यह खबर भी पढ़िए… गांववाले बोले- ईसाई को दफनाने नहीं देंगे: बस्तर में 13 दिन से रखा पादरी का शव, SC बोला- सरकार-हाईकोर्ट समाधान नहीं कर पाए, ये दुखद सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को एक व्यक्ति ने अपने पिता को दफनाने के लिए याचिका लगाई। जिसमें बताया कि उसके पिता सुभाष पादरी थे। 7 जनवरी को बीमारी के कारण उनका निधन हो गया था। बस्तर के दरभा गांव के कब्रिस्तान में वह पिता का शव दफनाना चाहते हैं, लेकिन ग्रामीण ऐसा नहीं करने दे रहे हैं। पढ़ें पूरी खबर…