छत्तीसगढ़ के 2,897 शिक्षकों को हाईकोर्ट के आदेश के बाद सरकार ने नौकरी से निकाल दिया। लगभग 12 से 16 महीने इनकी नौकरी को बीत चुके थे। अब ये सभी समायोजन (एडजस्टमेंट) यानी नौकरी के बदले नौकरी की मांग लेकर पिछले एक महीने से प्रोटेस्ट कर रहे हैं। पहले पार्ट में आज आपको बताते हैं आखिर क्या है पूरा विवाद, क्यों गई शिक्षकों की नौकरी, क्यों सुप्रीम कोर्ट को कहना पड़ा कि केंद्र की लापरवाही के कारण ये सब हुआ? क्यों कहा कोर्ट ने कि ये संविधान के खिलाफ है। इस रिपोर्ट में जानिए विस्तार से पूरा सच… सबसे पहले जानिए पूरा मामला क्या है B.Ed शिक्षकों का ये पूरा मसला 2018 में NCTE (नेशनल काउंसिल ऑफ टीचर एजुकेशन) की ओर से जारी एक गाइडलाइन के बाद से शुरू हुआ। NCTE भारत सरकार की वो बॉडी है, जो किसी कक्षा में पढ़ाने के लिए शिक्षकों का मापदंड तय करती है। गाइडलाइन में NCTE ने BE.D. वालों को प्राइमरी स्कूलों में पढ़ाने के योग्य माना था लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द कर दिया। अब पढ़िए 11 अगस्त 2023 को दिए सुप्रीम कोर्ट का ये कमेंट: “प्राइमरी स्कूलों के टीचर्स के लिए योग्यता के तौर पर B.Ed. (बैचलर ऑफ एजुकेशन) को शामिल करके केन्द्र सरकार ने संविधान और कानून के खिलाफ काम किया….ये RTE (राइट टू एजुकेशन) के भी खिलाफ है। इन परिस्थितियों में हमें ये कहने में कोई संकोच नहीं है कि इसे रद्द किया जाए।” इस फैसले के बाद देश भर में 2018 के बाद जिन भी B.Ed. वालों को प्राइमरी क्लास में टीचर के तौर पर सरकारी स्कूलों में नियुक्त किया गया था, सभी की नौकरी खतरे में पड़ गई। हालांकि 11 अगस्त को दिए अपने फैसले में SC ने दो बातें क्लियर नहीं की थी। पहले पॉइंट को लेकर सुप्रीम कोर्ट में मध्यप्रदेश से क्लेरीफिकेशन याचिका डाली गई। फैसला आया कि जिन लोगों की नौकरी 11 अगस्त से पहले लग चुकी है, उनकी नौकरी जारी रहने दी जाए। लेकिन दूसरे पॉइंट पर कोई चर्चा कोर्ट में हुई नहीं और इसका असर ये हुआ कि छत्तीसगढ़ में B.Ed. शिक्षकों की नौकरी हाथ से निकल गई। राजस्थान हाईकोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था मामला NCTE के नोटिफिकेशन के बाद कई राज्यों में B.Ed. वालों को प्राइमरी क्लास के टीचर्स के तौर पर नियुक्ति दी गई थी। जिसमें वेस्ट बंगाल, यूपी, मध्यप्रदेश, बिहार शामिल थे। इसी बीच साल 2021 में राजस्थान सरकार ने भी शिक्षक पात्रता परीक्षा के लिए विज्ञापन जारी किया। लेकिन इस विज्ञापन में प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने के लिए B.Ed. को क्राइटेरिया में शामिल ही नहीं किया गया। राजस्थान सरकार के इस विज्ञापन को देवेश शर्मा नाम के एक B.Ed. डिग्री धारक ने हाइकोर्ट में चुनौती दी। याचिका पर सुनवाई के दौरान तीन महत्वपूर्ण बातें सामने आई: और इस तरह हाईकोर्ट ने NCTE की गाइडलाइन को खारिज कर दिया। यहां से ये मामला सुप्रीम कोर्ट में गया। आगे बढ़ने से पहले ये समझ लीजिए कि क्यों राजस्थान हाईकोर्ट ने NCTE के बदलाव को MHRD के दबाव का नाम क्यों दिया…. D.EI.Ed. कैंडिडेट्स क्वॉलिफाई नहीं कर पा रहे थे TET, केन्द्र ने बदले नियम 9 मार्च, साल 2018 को MHRD के अधिकारियों की एक ऑफिशियल मीटिंग हुई थी। इस मीटिंग में केन्द्रीय विद्यालय (KVS) की ओर से बताया गया कि साल 2012 तक वो B.ED. वालों को प्राइमरी क्लास के टीचर्स के तौर पर अपॉइंट कर रहे थे। लेकिन इसके बाद NCTE की गाइडलाइन में हुए बदलाव के चलते ऐसा नहीं हो पा रहा है। जिसके कारण उन्हें क्वॉलिटी टीचर्स नहीं मिल रहे हैं। KVS ने तर्क दिया कि देश भर में प्राइमरी टीचर्स की लगभग साढ़े सात लाख पोस्ट है। इनमें से D.EI.Ed. कैंडिडेट के जरिए सिर्फ 50% सीट ही भर पाती हैं। बाकी खाली रह जाती हैं, क्योंकि D.EI.Ed कैंडिडेट शिक्षक पात्रता परीक्षा पास नहीं कर पाते। ये स्थिति आगे बनी रही तो बच्चों की शिक्षा प्रभावित होगी। जिसके बाद ये तय किया गया कि स्पेशल कंडीशन के साथ KVS को B.Ed. कैंडिडेट की भर्ती की अनुमति दे दी जाए। ये मसला तात्कालिक MHRD मिनिस्टर प्रकाश जावड़ेकर की टेबल में आया। जावड़ेकर KVS के अलावा अन्य स्कूलों में भी B.Ed. कैंडिडेट्स को प्राइमरी क्लास में टीचर्स के तौर पर अपॉइंट करने के पक्ष में थे। 30 मई साल 2018 को NCTE को एक लेटर भेजकर अपने गाइडलाइन में बदलाव करने के निर्देश केन्द्र सरकार की ओर से दिए गए। और इसके 30 दिन बाद यानी 29 जून को NCTE ने अपने गाइडलाइन में बदलाव कर दिया। NCTE के मुख्य एडवोकेट पैरवी करने ही नहीं पहुंचे सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई को लेकर हमने सीधे B.Ed. की ओर से पिटीशन दायर करने वाले देवेश शर्मा से बात की। देवेश ने हमें बताया कि NCTE की ओर से मुख्य एडवोकेट सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता थे। लेकिन वो किसी सुनवाई में नहीं पहुंचे। उनकी जगह जूनियर एडवोकेट मनीषा टी. कारिया ने NCTE का पक्ष रखा था। इसके चलते केस हल्का पड़ गया। इसके अलावा कोर्ट ने कई बार NCTE से मिनट्स ऑफ मीटिंग मांगा था। दरअसल, अपनी गाइडलाइन में किसी भी तरह के बदलाव से पहले NCTE को अपनी कमेटी की एक बैठक बुलानी पड़ती है। कमेटी के लोग बैठक में सभी पहलुओं पर डिस्कशन करने के बाद कोई फैसला लेते हैं। लेकिन कोर्ट के सामने NCTE इस बैठक की मिनट्स ऑफ मीटिंग प्रेजेंट नहीं कर पाई। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने भी NCTE को गाइडलाइन रद्द करने का आदेश दे दिया। ये फैसला राजस्थान HC के फैसले और उसके पीछे दिए गए पॉइंट्स को वैलिड मानते हुए दिया गया। हालांकि गौर करने वाली बात ये भी है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले में कहीं भी इस बात का जिक्र नहीं है कि 2010 से 2012 तक B.Ed. कैंडिडेट्स को भी प्राइमरी क्लास में टीचर बनने के लिए एलिजिबल माना जाता था। इसी गाइड लाइन के तहत ही केन्द्रीय विद्यालय B.Ed. कैंडिडेट्स को नौकरी दे रहा था। इसके उलट जजमेंट ऑर्डर में लिखा है कि 2018 से पहले तक B.Ed. को कभी प्राइमरी क्लास में टीचिंग के लिए आवश्यक योग्यता में शामिल नहीं किया है। NCTE के चेयर पर्सन बोले: हम शायद कोर्ट में अपना पॉइंट नहीं रख सके इस पूरे मसले पर हमने NCTE के वर्तमान चेयरपर्सन प्रोफेसर पंकज अरोड़ा से भी बात की। उन्होंने कहा– NCTE गाइड लाइन सारी चीजों को ध्यान में रखकर बनाता है। शायद सुप्रीम कोर्ट में हम अपना पॉइंट ठीक से नहीं रख पाए होंगे, इसलिए फैसला हमारे खिलाफ आया। प्रोफेसर अरोड़ा ने आगे कहा कि अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है। अब हम आगे की ओर देख रहे हैं। अप्रैल से पहले ब्रिज कोर्स तैयार कर लिया जाएगा। ताकि 11 अगस्त 2024 के पहले जो शिक्षक हैं, उनकी नौकरी बचाई जा सके। SC का फैसला आते ही D.EI.Ed.कैंडिडेट पहुंचे HC दूसरी ओर सुप्रीम कोर्ट में जब पूरे मामले में सुनवाई चल रही थी, तभी 4 मई, 2023 को प्राइमरी स्कूलों में टीचर्स भर्ती को लेकर छत्तीसगढ़ सरकार ने नोटिफिकेशन जारी किया। इसमें B.ED. टीचर्स को भी एग्जाम के लिए इनवाइट किया गया। नोटिफिकेशन जारी होने के एक महीने बाद 10 जून 2023 को एग्जाम हुआ और 2 जुलाई को मेरिट लिस्ट जारी कर दी गई। इसके अगले महीने ही सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया। जिसके बाद D.EI.Ed.कैंडिडेट सीधे हाईकोर्ट पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट का जजमेंट आ चुका था, HC ने भी B.ED.कैंडिडेट्स की काउंसलिंग निरस्त करने का आदेश दे दिया। इस फैसले को B.ED.कैंडिडेट्स ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। B.Ed. वालों को सिर्फ अंतरिम राहत ही मिली यहां पहली दफा सुप्रीम कोर्ट के सामने दूसरे पॉइंट (फैसले के पहले जो भर्ती प्रक्रिया शुरू कर दी गई हैं, उनका क्या किया जाएगा) को फोकस में लाया गया। सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को सुनते हुए फैसला दिया कि काउंसलिंग के बीच में B.Ed. कैंडिडेट्स को बाहर करना सही नहीं है। ऐसे में कोर्ट ने इन्हें अंतरिम राहत देते हुए ये शर्त रखी कि इस मामले में अंतिम फैसला हाईकोर्ट का ही होगा। तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने आखिर विधानसभा चुनाव के एक महीने यानी सितंबर 2023 में B.ED.कैंडिडेट्स को ऑफर लेटर बांट दिया। इस ऑफर लेटर में टर्म एंड कंडीशन के तौर पर 13 पॉइंट लिखे गए थे। आखिर पॉइंट पर नौकरी का भविष्य हाईकोर्ट के अंतिम आदेश पर छोड़ दिया गया था। HC कोर्ट ने B.Ed. कैंडिडेट्स के खिलाफ दिया फैसला हाईकोर्ट ने अप्रैल 2024 को अपना फाइनल फैसला सुनाया। ये फैसला B.Ed. कैंडिडेट्स के खिलाफ दिया गया। हाईकोर्ट ने फैक्चुअल बैकग्राउंड पर सुप्रीम कोर्ट और राजस्थान HC में हुई प्रोसिडिंग का हवाला दिया है। इसके बाद फिर B.Ed. कैंडिडेट्स SC पहुंचे, लेकिन इस बार कोई राहत SC की ओर से B.Ed. कैंडिडेट्स काे नहीं दी गई। अगले पार्ट में आपको बताएंगे नौकरी जाने के बाद की कहानी और आगे इस मामले में क्या हो सकता है।

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