बस्तर में पिछले 24 साल में 3459 IED रिकवर की गई है। सिर्फ साल 2024 में 311 IED मिली है। इन आंकड़ों से ये समझा जा सकता है कि, बस्तर की धरती में कितनी आसानी से IED प्लांट किया जा रहा है। बीजापुर में 6 जनवरी को इसी IED की चपेट में आकर स्कॉर्पियो सवार DRG के 8 जवान और एक सिविलियन शहीद हो गए। एक्सपर्ट्स के मुताबिक नक्सली हमले में 60 प्रतिशत कैजुअल्टी IED विस्फोट से ही हुई है। बीजापुर में जो IED प्लांट हुआ था, उसे बनाने में महज 35 हजार रुपए की लागत आई होगी। बेसिक नॉलेज और सामान होने पर आसानी से इसे 20 मिनट में तैयार किया जा सकता है। लेकिन IED किस तरह का एक्सप्लोसिव है, इसकी हिस्ट्री क्या है, ये काम कैसे करता है, नक्सलियों ने IED कहां से बनाना सीखा, क्यों नक्सली इसका सबसे ज्यादा उपयोग करते हैं और इस बार सुरक्षा में हमसे कहां चूक हो गई। जानिए इस एक्सप्लेनर में … अंग्रेजों ने होम मेड बम को IED नाम दिया द ट्रबल डेज… 1969 से 1990, लगभग इस 30 साल के दौर को आयरिश और इंग्लिश लोग इसी नाम से जानते हैं। इसी टाइम पीरियड में पहली दफा IED शब्द अस्तित्व में आया था। ये वो दौर था, जब उत्तरी आयरलैंड में आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (IRA) ब्रिटिश आर्मी के बीच जोरदार संघर्ष चल रहा था। इन दिनों यहां सिर्फ मौत, रिवेंज और कार बम विस्फोट इन तीन चीजों की चर्चा होती थी। दरअसल, संसाधनों और हथियारों के लिहाज से आयरिश रिपब्लिकन आर्मी (IRA) ब्रिटिश आर्मी की तुलना में काफी कमजोर थी। IRA के लोगों को आमने–सामने की लड़ाई में नुकसान उठाना पड़ता था। ऐसे में IRA ने कारों में बम प्लांट करना शुरू किया। इनके लोग किसी कार में बम प्लांट करते, इस कार को किसी तयशुदा जगह पर ड्रॉप करते और फिर टारगेट देखकर कार में विस्फोट कर देते। इस तरह के कार विस्फोट से ब्रिटिश आर्मी को बड़ा नुकसान उठाना पड़ रहा था। ब्रिटिश आर्मी की जांच में ये बात सामने आई कि IRA के लोग जो बम उपयोग कर रहे हैं, उसमें एक्सप्लोसिव के तौर पर नाइट्रोबेनजिन, कुछ फर्टिलाइजर और डीजल ऑयल का मिक्सर यूज हो रहा है। ये बम अलग–अलग साइज और मात्रा में IRA के लोग घरों पर ही तैयार कर रहे हैं। इस तरह के बम बनाने में अमेरिका और लीबिया से IRA को मदद मिल रही थी। इनकी पहचान आसानी से हो सके, इसलिए ब्रिटिश आर्मी ने इन होम मेड बम को नाम दिया IED यानी इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस। एक ऐसा विस्फोटक उपकरण जिसे घरेलू जुगाड़ से तत्काल तैयार किया जा सके। इसके बाद साल 2003 में इराक वार के दौरान IED ग्लोबली चर्चा में आया। नक्सलियों ने श्रीलंका के आतंकियों से सीखा IED बनाना साल 2014 में पब्लिश एक जर्नल, प्रोसिडिंग ऑफ द इंडियन हिस्ट्री कांग्रेस में दावा किया गया है कि नक्सलियों के कुछ लीडर्स ने लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम (LTTE) के लोगों से IED बनाना सीखा था। 1980 के दशक में श्रीलंका में LTTE आतंकवादी संगठन के तौर पर बेहद सक्रिय था। ये विश्व का पहला ऐसा संगठन है, जिसने ह्यूमन बम का उपयोग किया । जर्नल में इस बात का भी दावा किया गया है कि नक्सलियों को क्लेमोर माइन यानी डायरेक्शनल IED बनाने में भी महारत हासिल हैं। इन IED’s को पेड़ पर प्लांट किया जा सकता है। 5 कंपोनेंट से मिलकर बनता है IED, तैयार करने में लगते हैं सिर्फ 20 मिनट स्टेट फोरेंसिक लेबोरेटरी, रायपुर के संयुक्त संचालक टी एल चंद्रा ने बताया कि IED बनाने के लिए बेसिक तौर पर पांच कंपोनेंट्स की जरूरत होती है। कोई व्यक्ति जिसे सही केमिकल मिश्रण के अनुपात और बेसिक इलेट्रिकल नॉलेज हो, वो आसानी से 20 मिनट में IED तैयार कर सकता है। चंद्रा कहते हैं कि इस तरह के एक्सपटर्स नक्सलियों के टीम में हैं। ऐसे में IED तैयार करना उनके लिए आसान है। एक स्कॉर्पियो उड़ाने के लिए 10 किलो IED ही काफी हाल की घटना के प्राइमरी इन्वेस्टिगेशन में ये फैक्ट सामने आया है कि बीजापुर IED ब्लास्ट में लगभग 50 किलो एक्सप्लोसिव का उपयोग हुआ है। मेनचार्ज में उपयोग हुए एक्सप्लोसिव और इसकी क्वाटिंटी पर हमने स्टेट फोरेंसिक लेबोरेटरी, रायपुर के डायरेक्टर डॉ राजेश कुमार मिश्रा ने बातचीत की। उन्होंने बताया- स्कॉर्पियो जैसी एक गाड़ी को उड़ाने के लिए 10-12 किलो एक्सप्लोसिव ही काफी है। इस लिहाज से नक्सलियों ने जो विस्फोट किया है, उससे लगभग 5 स्कॉर्पियो गाड़ी उड़ाई जा सकती थी। डॉ मिश्रा ने बताया साल 2021 में भी DRG के जवानों से भरी एक बस को नक्सलियों ने IED ब्लास्ट में उड़ाया था। लैब टेस्ट के दौरान सामने आया कि IED के मेन चार्ज के तौर पर उन्होंने अमोनियम नाइट्रेट और ब्लैक गन पाउडर का उपयोग किया था। इसी तरह साल 2013 के दरभा कांड के दौरान भी नक्सलियों ने IED के मेन चार्ज में अमोनियम नाइट्रेट फ्यूल ऑयल और ब्लैक पाउडर उपयोग किया था। दरअसल, 2012 तक अमोनियम नाइट्रेट फर्टिलाइजर के कैटेगेरी में आता था। ऐसे में ये मार्केट में आसानी से मिल जाता था। डॉ मिश्रा ने बताया कि इस बार की तरह साल 2021 में भी नक्सलियों ने कमांड वायर IED का उपयोग किया था। लैब टेस्ट में सामने आया था कि नक्सलियों ने मेटल डिटेक्टर से बचने के लिए इलेक्ट्रिक वायर के ऊपर ब्लू कार्बन पेपर की लेयरिंग की हुई थी। 35 से 40 हजार में तैयार हो जाता है 50 किलो एक्सप्लोसिव NIT, रायपुर के माइनिंग डिपार्टमेंट में प्रोफेसर मनोज प्रधान बताते हैं कि IED और माइनिंग एक्सप्लोसिव में ज्यादा फर्क नहीं होता। लेकिन IED डर्टी बम है। आसान शब्दों में समझा जाए तो माइनिंग एक्सप्लोसिव को कई लेवल में फिल्टर किया जाता है। इससे इसकी कीमत भी बढ़ती है, लेकिन IED बनाने में इस तरह की कोई प्रोसेस फॉलो नहीं की जाती। सस्ते केमिकल्स और बेहद हॉर्मफुल केमिकल के साथ डीजल या पेट्रोल ऑयल का मिक्चर IED बनाने में किया जाता है। प्रधान ने बताया कि अमोनियम नाइट्रेट से IED तैयार की जाए तो 35 से 40 हजार के कास्ट में 50 किलो एक्सप्लोसिव तैयार किया जा सकता है। सस्ता और आसानी से उपलब्ध होने के कारण नक्सली इसका उपयोग सबसे ज्यादा करते हैं। पूरे ऑपरेशन के दौरान सुरक्षाबलों से हुई दो बड़ी चूक हाल के हमले पर हमने ब्रिगेडियर (रि.) बसंत कुमार पंवार से भी बात की। पंवार गोरिल्ला युद्ध के एक्सपर्ट हैं। उन्होंने बताया पूरे ऑपरेशन के दौरान दो बड़ी चूक नजर आ रही है। 1. रोड ओपनिंग पार्टी ने अपना काम ठीक तरह से नहीं किया। पंवार ने बताया- किसी भी ऑपरेशन के लिए निकलते या वापसी के वक्त मुख्य ऑपरेटिंग दल के रूट को सैनिटाइज करने का काम रोड ओपनिंग पार्टी (ROP) का होता है। ROP का फॉर्मेशन वी (V)शेप में होता है। बीच में व्हीकल और उसके दोनों और पैदल गस्त करने वाला दल। इस दल के साथ स्निफर डॉग भी मौजूद होते हैं। ये दल मौके पर तब तक मौजूद होता है, जब तक मुख्य ऑपरेटिंग दल सुरक्षित अपने ठिकाने पर न पहुंच जाए। लेकिन हालिया इंसिडेंट में ROP पार्टी के साथ कोई स्निफर डॉग या पैदल मार्च करने वाले सिपाही मौजूद नहीं थे। वहीं ROP पार्टी मुख्य ऑपरेटिंग दल के निकलने से पहले ही आगे बढ़ चुकी थी। स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर फॉलो नहीं किया गया। ‘ 2. जंगल के रास्तों पर ऐहतियातन बाइक पर या पैदल ही ऑपरेशन पर निकला जाता है। जवानों को इसके लिए स्पेशल ट्रेनिंग दी जाती है। इतने बड़े ऑपरेशन के बाद चार पहिया गाड़ी से वापस लौटना गलत था। जवानों को इसके लिए बाइक का उपयोग करना चाहिए था। संकरे और उबड़–खाबड़ रास्तों में बड़ी गाड़ियों को निशाना बनाना नक्सलियों के लिए आसान होता है। इसके अलावा बड़ी गाड़ी पर हमला होने से कैजुअल्टी रेट भी ज्यादा होती है। ……………………………. छत्तीसगढ़ में नक्सली अटैक से जुड़ी ये खबर भी पढ़ें… 1. बम 2 फीट के नीचे, तो डिटेक्ट नहीं हो सकता:बीजापुर हमले में 5 फीट नीचे थी IED; बस्तर में गहराई में बम ढूंढने मशीन नहीं नक्सलियों ने बम या IED जमीन के दो फीट से ज्यादा गहराई में लगाई हो, तो जवानों के पास ऐसी कोई मशीन नहीं कि उसका पता लगाया जा सके। बीजापुर में हुए नक्सली हमले में भी यही हुआ। इसमें 1 ड्राइवर और 8 जवान शहीद हो गए थे। इसमें आईईडी को करीब पांच फीट नीचे लगाया गया था। पढ़ें पूरी खबर
2. बीजापुर नक्सली हमला, सड़क बनते समय IED लगाई थी:बारूद बिछाने के 3 साल बाद ब्लास्ट किया, DRG जवान ही निशाने पर थे यह वो समय और तारीख है, जब बीजापुर जिले में नक्सलियों ने DRG जवानों से भरी एक गाड़ी को ब्लास्ट कर उड़ा दिया। इसमें 8 जवान और एक ड्राइवर शहीद हो गए। यह साल 2025 का पहला सबसे बड़ा नक्सली हमला है। पढ़ें पूरी खबर

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