भास्कर न्यूज | बालोद शहर के शिकारीपारा में महिला मानस मंडली एवं वार्डवासियों के तत्वावधान में आयोजित शिव महापुराण में अरूण महाराज ने पांचवें दिन भगवान गणेश व कार्तिक के जन्म की कथा बताई। उन्होंने कहा कि ताड़कासुर के उपद्रव से देवगण त्रस्त हो गए थे। उसे यह वरदान था कि शिव के पुत्र से ही उनकी मृत्यु होगी। उसके आतंक से देवता भी भयभीत हो गए। जब महादेव से वरदान प्राप्त असुरों के राजा तारकासुर के भय से सभी देवता त्राहि-त्राहि करने लगे और समाधान के लिए कई भगवान के पास में गए। तब कामदेव के आग्रह पर मां पार्वती ने इस समस्या का समाधान करने का बीड़ा उठाया। माता पार्वती ने घोर तपस्या कर शिवजी को मनाया। भगवान शिवजी ने मां पार्वती के साथ पाणिग्रहण किया। उसके बाद भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ। क्योंकि महादेव के पुत्र से ही तारकासुर का अंत हो सकता था, इसलिए देवताओं ने महादेव के पुत्र भगवान कार्तिकेय को अपना सेनापति बनाया। जिसके बाद हुए देवासुर संग्राम में भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया। वध होने से ताड़कासुर के आतंक से ऋषि मुनियों को मुक्ति तो मिली, लेकिन कार्तिकेय परेशान थे। ताड़कासुर उनके पिता भगवान शिव के भक्त थे। गणेश को आशीर्वाद दिया उन्होंने कहा कि हिंदू धर्म में सबसे ज्यादा पूजे जाने वाले भगवानों में एक गणेशजी भी हैं। पढ़ाई, ज्ञान, धन लाभ और अच्छी सेहत के लिए भी गणेश की पूजा की जाती है। उन्होंने कहा कि ब्रह्मावैवर्त पुराण के मुताबिक, जब सभी भगवान गणेश को आशीर्वाद दे रहे थे, उस समय शनि देव सिर को झुकाए खड़े थे। ये देखने पर मां पार्वती ने उनसे उनका सिर झुका कर खड़े होने का कारण पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि अगर वे गणेशजी को देखेंगे तो हो सकता है कि उनका सिर शरीर से अलग हो जाएगा। लेकिन पार्वती के कहने पर शनि देव ने गणेश की ओर नजर उठाकर देख लिया।