रमन सिंह ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के दिग्गज नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा को हराकर राजनांदगांव सीट से जीत हासिल की थी. इस अप्रत्याशित जीत ने उन्हें केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी कैबिनेट में वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री के रूप में जगह दी.

नई दिल्ली: 

पांच साल में बहुत कुछ हो सकता है और ये बात रमन सिंह से बेहतर कम ही लोग जानते होंगे. 2018 में जब छत्तीसगढ़ में चुनाव हो रहा था, तब रमन सिंह बुलंदियों पर थे और बीजेपी के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले नेता थे. उस वक्त रमन सिंह सीएम के तौर पर 15 साल काम कर चुके थे, जबकि गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी का 12 साल और शिवराज सिंह चौहान का मध्य प्रदेश के सीएम के तौर पर 13 साल का कार्यकाल पूरा हुआ था.रमन सिंह उस वक्त छत्तीसगढ़ में पार्टी का निर्विवाद चेहरा भी थे.

हालांकि, 2023 आते-आते शिवराज सिंह चौहान ने रमन सिंह का रिकॉर्ड तोड़ दिया. बीजेपी ने इस बार घोषणा की है कि वो छत्तीसगढ़ में सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी. राज्य में हालात ऐसे हो गए हैं कि रमन सिंह ने हाल ही में कहा है कि अगर पार्टी उन्हें मुख्यमंत्री पद की पेशकश करेगी, तो वो इनकार नहीं करेंगे.

रमन सिंह का राजनीतिक सफर
रमन सिंह 1975 के आसपास श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा स्थापित भारतीय जनसंघ से जुड़े, जिसका बाद में जनता पार्टी में विलय हो गया. 1980 में जनता पार्टी के विघटन के बाद अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी सहित इसके पूर्व सदस्यों ने भारतीय जनता पार्टी का गठन किया. रमन सिंह को 1976 में जनसंघ की जिला इकाई का युवा अध्यक्ष नियुक्त किया गया. 1983 में उन्होंने अपना पहला चुनाव जीता और कवर्धा में नगर निगम पार्षद बने.

सात साल बाद रमन सिंह ने पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और कवर्धा से विधायक चुने गए. 1993 में चुनाव हुए और वो फिर से निर्वाचित हुए. उन्हें पहली हार का सामना पांच साल बाद करना पड़ा, जब वो कवर्धा शाही परिवार के वंशज कांग्रेस के योगेश्वर राज सिंह से हार गए.

हालांकि, शानदार वापसी करते हुए रमन सिंह ने लोकसभा चुनाव लड़ा और कांग्रेस के दिग्गज नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मोतीलाल वोरा को हराकर राजनांदगांव सीट से जीत हासिल की. इस अप्रत्याशित जीत ने उन्हें केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी कैबिनेट में वाणिज्य और उद्योग राज्य मंत्री के रूप में जगह दी.

जब 2003 में अगला चुनाव हुआ, तो भाजपा 90 में से 50 सीटें जीतकर अपने दम पर बहुमत हासिल करने में सफल रही. राज्य में भाजपा का मुख्य चेहरा दिलीप सिंह जूदेव भ्रष्टाचार के घोटाले में फंस गए थे और इसके चलते पार्टी ने रमन सिंह को मुख्यमंत्री बनाया.

15 साल सीएम का कार्यकाल
मुख्यमंत्री के रूप में अपने 15 वर्षों में रमन सिंह की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सुधार था, जिसके कारण उन्हें ‘चावल वाले बाबा’ की उपाधि मिली. उन्होंने छत्तीसगढ़ खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2012 को भी आगे बढ़ाया, जिसका उद्देश्य खाद्य और पोषण सुरक्षा प्रदान करना था.

दूसरी ओर, उनकी सरकार को बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के आरोपों का भी सामना करना पड़ा. राज्य में माओवादियों से निपटने के लिए राज्य प्रायोजित मिलिशिया, सलवा जुडूम का निर्माण भी ग्रामीणों के खिलाफ हिंसा के आरोपों के बाद बहुत विवादास्पद साबित हुआ.

चुनाव हार और आगे क्या?
2018 के चुनाव में कांग्रेस ने राज्य में जीत हासिल की, 90 में से 68 सीटें जीतीं और भाजपा को पिछले चुनावों में जीती 49 सीटों में से केवल 15 पर ही सीमित कर दिया. इसने रमन सिंह को मुश्किल स्थिति में डाल दिया और भाजपा ने उन्हें इस साल के चुनावों के लिए मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं किया है. यहां 7 और 17 नवंबर को दो चरणों में चुनाव होने हैं.

अपनी सामाजिक कल्याण योजनाओं की बदौलत लोकप्रिय दिखने वाली भूपेश बघेल की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार के साथ 71 साल के रमन सिंह को अपने करियर की सबसे कठिन लड़ाइयों में से एक का सामना करना पड़ रहा है.

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