भारत के फ़िलिस्तीन के साथ भी ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ संबंध हैं. 1974 में भारत पहला गैर-अरब देश था जिसने इसे फिलिस्तीनियों के “वैध प्रतिनिधि” के रूप में और 1988 में पूर्ण देश के रूप में मान्यता दी.

नई दिल्‍ली : 

हमास ने जब इज़रायल पर हमला किया था, तो भारत उन कुछ शुरुआती देशों में था, जिसने कहा कि वह इस संकट की घड़ी में इज़रायल के साथ खड़ा है. प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्‍याहू ने जब पिछले दिनों पीएम नरेंद्र मोदी को फोन कर इज़रायल-हमास युद्ध की स्थिति से अवगत कराया, तब भी भारत, इज़रायल के समर्थन में खड़ा दिखा. लेकिन गुरुवार को भारत ने इज़रायल-हमास युद्ध को लेकर जो आधिकारिक बयान दिया, वो सोचने पर मजबूर करता है. भारत का ये बयान दोनों देशों के साथ संतुलन बिठाने की कोशिश-सा प्रतीत हुआ.

भारत ने गुरुवार को कहा कि उसने “हमेशा…एक संप्रभु, स्वतंत्र और व्यवहार्य फ़िलिस्तीन राज्य की स्थापना के लिए सीधी बातचीत की वकालत की है.” विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने यह भी कहा कि भारत अंतरराष्ट्रीय मानवीय कानून का पालन करने के सार्वभौमिक दायित्व से अवगत है. फ़िलिस्तीन मुद्दे पर भारत की स्थिति को “दीर्घकालिक और सुसंगत” बताते हुए बागची ने कहा था कि सरकार चाहती है कि बातचीत से एक फ़िलिस्तीन राज्य “सुरक्षित और मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर, इज़राइल के साथ कंधे से कंधा मिलाकर (और) शांति से रहे.”

सरकार का ये बयान, पहले के बयानों जैसा ही है, जिनमें इज़रायल के लिए स्पष्ट समर्थन की पेशकश की गई थी और फिलिस्तीन का कोई उल्लेख नहीं किया गया था, जिसकी विपक्षी राजनेताओं और नागरिक समाज कार्यकर्ताओं ने आलोचना की थी. हमास के 7 अक्टूबर के हमले पर अपनी पहली टिप्पणी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा था कि इस हमले से उन्‍हें “गहरा झटका” लगा है. इसके बाद उन्‍होंने इसे “आतंकवादी” हमला करार दिया था.

हालांकि, गाज़ा पट्टी पर जैसे-जैसे हालात खराब होंगे, और यदि अरब देश जो अब तक गाज़ा पर हमले के बारे में अपेक्षाकृत शांत रहे हैं, वो बोलना शुरू करते हैं, तो भारत खुद को एक कठिन स्थिति में पा सकता है. अरब देशों के साथ भारत के कई रणनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक हित हैं. और फिर तेल तो है ही… भारत अपना अधिकांश तेल इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात से आयात करता है. यदि इसे रोक दिया जाता है या कम कर दिया जाता है (किसी भी कारण से), तो रूस से बढ़ा हुआ आयात कुछ हद तक भरपाई कर सकता है, लेकिन पूरी तरह से नहीं.

भारत के फ़िलिस्तीन के साथ भी ऐतिहासिक रूप से घनिष्ठ संबंध हैं. 1974 में भारत पहला गैर-अरब देश था जिसने इसे फिलिस्तीनियों के “वैध प्रतिनिधि” के रूप में और 1988 में पूर्ण देश के रूप में मान्यता दी. मोदी सरकार के तहत वे संबंध जारी रहे हैं, जिसमें दिवंगत विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने 2016 में फिलिस्तीन का दौरा किया था और तत्कालीन फिलिस्तीनी राष्ट्रपति महमूद अब्बास ने 2017 में भारत का दौरा किया था. दरअसल, यह सिर्फ पीएम मोदी की भाजपा सरकार नहीं है जिसने फिलिस्‍तीन के लिए “एक स्वतंत्र देश” का आह्वान किया है. 1977 में, जब भाजपा के सबसे बड़े नेताओं में से एक, दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि मध्य पूर्व के मुद्दे को हल करने के लिए “इज़रायल को अवैध रूप से कब्जा की गई फिलिस्तीनी भूमि को खाली करना होगा.”

इज़रायल-हमास युद्ध के बीच एक वीडियो इस सप्ताह सोशल मीडिया पर फिर से सामने आया. इस वीडियो में भारत की अब तक के दो बयानों को जोड़कर दिखाया गया. इसमें मई 2021 में दिए गए बयानों को दिखाया गया है, जब हमास द्वारा रॉकेटों की बौछार और उसके बाद इज़रायल के हवाई हमलों में लगभग 300 लोग मारे गए थे. उस मौके पर भारत ने दोनों पक्षों की आलोचना की थी.

इज़राइल और हमास के बीच युद्ध के इस दौर में भारत की दूसरी और अधिक संतुलित प्रतिक्रिया को इस संघर्ष के कारण उत्पन्न घरेलू राजनीतिक विवाद के कारण भी महत्वपूर्ण माना गया है. “सम्मान और सम्मान के साथ जीने” के उनके अधिकार का बचाव करने वाले एक बयान के बाद, विपक्षी कांग्रेस पर भाजपा द्वारा आतंकवाद का समर्थन करने और “अल्पसंख्यक वोट बैंक की राजनीति का बंधक” होने का आरोप लगाया गया था.

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