सुनवाई के दौरान CJI ने कहा कि ये कोई रेप पीड़िता नहीं है. ना ही नाबालिग है. वो 26 हफ्ते तक क्या कर रही थी? वो कोई 14.15 साल की नाबालिग नहीं है जो शरीर के परिवर्तन को ना समझ सके.

नई दिल्ली: 

भ्रूण का गर्भपात कराने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को एक बड़ी टिप्पणी की है. कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई के दौरान कहा है कि हम न्यायिक आदेश के तहत भ्रूण को मौत के घाट उतारने के लिए नहीं कह सकते. इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने की. इस बेंच में CJI डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदी वाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं. सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता महिला अपने पति के साथ ऑनलाइन मौजूद रही. इस मामले में शुक्रवार को भी सुनवाई जारी रहेगी.

सुनवाई के दौरान ASG ऐश्वर्या भाटी ने बहस शुरू की शुरुआत की. ASG ने एम्स की छह अक्टूबर और दस अक्टूबर की रिपोर्ट दिखाते हुए कहा कि मौजूदा स्थिति बहुत ही संवेदनशील और नाजुक है. बच्चा जन्म लेने को तैयार है.लेकिन संभावित मां की सेहत का रिकॉर्ड सही नहीं है – शारीरिक और मानसिक दिक्कतों को वजह से दुविधा है. महिला रोग विभाग की प्रमुख ने भी जांच को है. गर्भ को खत्म करना उचित नहीं क्योंकि भ्रूण में जीवन के लक्षण हैं. ऐसे में  गर्भपात कराने के आदेश को वापस लेना चाहिए.

ASG ने आगे कहा कि प्रजनन अधिकार पूर्ण अधिकार नहीं है. यह संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा सीमित है. कानून को चुनौती नहीं दी गई है. जिस मामले कौ आधार बनाया गया उसमें  उस नियम को चुनौती थी जो एक अविवाहित महिला को 24 सप्ताह के बाद गर्भपात की मांग करने से रोकता था. ऐसे हालात  देश की बहुत सारी महिलाओं के साथ हैं .पहले महिला बच्चे के लिए तैयार हो गई थीं लेकिन कल उसने मना कर दिया. ऐसे मामले में गर्भपात का आदेश नहीं देना चाहिए

सुनवाई के दौरान CJI ने महिला के वकील से पूछा कि ये सिर्फ गर्भपात का मामला नहीं है. इसके लिए बच्चे के दिल को रोकना होगा. बच्चा जिंदा पैदा हो सकता है. ऐसे में महिला बच्चा नहीं चाहती तो गोद दिया जा सकता है. CJI ने कहा कि ये कोई रेप पीड़िता नहीं है. ना ही नाबालिग है. वो 26 हफ्ते तक क्या कर रही थी? वो कोई 14.15 साल की नाबालिग नहीं है जो शरीर के परिवर्तन को ना समझ सके. क्या आप चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट डॉक्टरों से कहे कि एक धड़कते दिल को बंद कर दे ?

CJI ने कहा कि बच्चे के लिए कोई पेश नहीं हो रहा है.  हमें बच्चे के अधिकार पर भी सोचना होगा. सीजेआई ने कहा कि क्या हम एम्स को न्यायिक आदेश के जरिए बच्चे की मौत के आदेश जारी करें. सीजेआई ने कहा कि हर महिला ऐसे मामलों में डिप्रेशन का शिकार होती है. पको ये बात 26 हफ्ते में पता चली. सीजेआई ने कहा कि आप कहते हैं कि बच्चे का दिल बंद नहीं करना चाहते. एम्स कहता है कि आज भी डिलीवरी हो तो बच्चा असामान्य हो सकता है. क्या आप दो हफ्ते रुक नहीं सकते ताकि बच्चा सही सलामत हो.

जस्टिस पारदीवाला- आप चाहते हैं कि दिल भी बंद ना हो और महिला को भी इससे छुटकारा मिले. ऐसे में महिला को बच्चे के लिए दो हफ्ते के लिए रुकने के लिए कहें. सीजेआई ने कहा कि आपके पास दो विकल्प हैं कि एक हम एम्स को कहें कि भ्रूण को खत्म कर दें,  दूसरा ये कि बच्चे को जन्म दिया जाए और अस्पताल में देख रेख हो. सीजेआई ने कहा कि आपके पास दो विकल्प  या तो बच्चे को मार दिया जाए या फिर वो दुनिया में जन्म ले. सीजेआई ने कहा- अगर आज असामान्य बच्चा होता है तो कोई गोद नहीं लेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि  ASG और महिला के वकील महिला से बात करें और बताएं.  हम शुक्रवार को सुनवाई करेंगे.

सीजेआई ने कहा कि हमें अजन्मे बच्चे के अधिकारों के बीच संतुलन बनाना होगा.  हम बच्चे को अपने पास रखने के लिए नहीं कह रहे हैं, उसकी सामान्य डिलीवरी हो जाए. यदि हम आज भ्रूण को हटाने का आदेश देते हैं या आज उसकी डिलीवरी कराते हैं तो संभावना है कि यह गंभीर विकृति के साथ पैदा होगा.  हम न्यायिक आदेश के तहत एम्स को भ्रूण को मौत के घाट उतारने के लिए नहीं कह सकते.  इस मामले में अब सुनवाई कल सुबह 10.30 बजे होगी.

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