सुप्रीम कोर्ट ने महिला को कोर्ट में बुलाया था, महिला ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि वो बच्चे को जन्म नहीं देना चाहतीं, वो डिप्रेशन में भी हैं और दवा खाती है. जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस बी वी नागरत्ना की बेंच ने ये सुनवाई की
मदद करने को तैयार है. सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को एक ऐसी नन्हीं जान के लिए फिर से सुनवाई को तैयार हो गया जो अभी मां की कोख में है और 26 हफ्ते की है. सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने इस भ्रूण का गर्भपात करने की इजाजत दी थी लेकिन मंगलवार को एम्स के डॉक्टरों की दुविधा का पता चलने के बाद CJI डी वाई चंद्रचूड़ ने मामले की गंभीरता को समझा. CJI चंद्रचूड़ की बेंच ने कहा है कि फिलहाल एम्स गर्भपात ना करे और अपने हाथ रोक लें.

CJI  ने कहा कि केंद्र ये आदेश वापस लेने के लिए औपचारिक आवेदन दाखिल करे, हम उस पीठ के समक्ष रखेंगे जिसने आदेश पारित किया. एम्स के डॉक्टर बहुत गंभीर दुविधा में हैं,  बच्चे का जन्म एक व्यवहार्य भ्रूण के रूप में होगा. मैं कल सुबह एक पीठ का गठन करूंगा, एम्स को अभी रुकने के लिए कहें. दरअसल एम्स के विशेषज्ञों की मेडिकल रिपोर्ट के आधार पर ASG ऐश्वर्या भाटी ने कोर्ट उठने से पहले CJI डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ के समक्ष मामला मेंशन किया. भाटी ने पीठ से कहा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश की वजह से एम्स के विशेषज्ञ पसोपेश में हैं. क्योंकि रिपोर्ट कोर्ट के आदेश के अनुकूल नहीं है. एम्स ने सुप्रीम कोर्ट से अपना आदेश वापस लेने का आग्रह किया, क्योंकि महिला के पेट में पल रहा भ्रूण जीवित है और उसके जन्म लेने की अनुकूल संभावना है, यानी वो जन्म लेने के लिए तैयार है.

इस अवस्था में ये गर्भपात नहीं बल्कि एक तरह से हत्या ही होगी. CJI चंद्रचूड़ ने इस मामले की गंभीरता को समझा और कहा कि वो इस मामले में बुधवार को बेंच का गठन कर सुनवाई करेंगे. CJI ने कहा कि तब तक एम्स इस मामले में अपने हाथ रोक कर रखे. दरअसल एम्स ने ऐश्वर्या भाटी को सूचित किया है कि चूंकि भ्रूण में जीवन के अंश दिखाई दिए हैं इसलिए उसके दिल की धड़कन रोके बिना गर्भपात नहीं हो सकता. ऐसे में ये गंभीर दुविधा की स्थिति है. सुप्रीम कोर्ट में ये साफ हो जाना चाहिए कि क्या माता पिता बच्चे को जन्म दे सकते हैं या उसे बाद मे गोद देने की प्रक्रिया की जा सकती है. सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने एक विवाहिता को अपने 26 हफ्ते के अनचाहे गर्भ को गिराने की इजाजत दे दी थी.

जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने कहा है कि वो पहले ही दो बच्चे की मां है और प्रसव बाद के अवसाद सहित स्वास्थ्य संबंधित कई तरह की दिक्कतों से जूझ रही है, वो आर्थिक मानसिक और सामाजिक तौर पर भी इस तीसरे बच्चे को पालने में अक्षम है. अदालत भी मानती है कि जब मां ही नहीं चाहती तो यह अदालत याचिकाकर्ता के निर्णय का सम्मान करती है. याचिकाकर्ता ने अदालत को बताया कि वो अपने दूसरे बच्चे को स्तनपान करा रही थी. मेडिकल रिपोर्ट के मुताबिक भी लेक्टरल अमेनोरिया की इस स्थिति के दौरान गर्भ नहीं ठहरता है. लेकिन उसे पता ही नहीं चला कि वो कब फिर से गर्भवती हो गई. जब तक पता चला तब तक काफी देर हो चुकी थी. कोर्ट ने एम्स के विशेषज्ञों को मेडिकल जांच कर रिपोर्ट देने को कहा था और अदालत ने निर्देश दिया कि मेडिकल सलाह पर ऊष्मायन की प्रक्रिया से भी गर्भपात कराया जा सकता है.

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