भारतीय जनता पार्टी (BJP) क्षेत्रीय नेताओं की महत्वाकांक्षाओं और प्रतिद्वंद्विता को कंट्रोल में रखने और पार्टी को मजबूत करने की कोशिश में हिंदी भाषी राज्यों (मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़) में सीएम पद के उम्मीदवार को पेश नहीं करेगी. पार्टी इन राज्यों में सामूहिक नेतृत्व पर चुनाव लड़ेगी.

नई दिल्ली: 

मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, समेत पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों (Assembly Elections 2023) में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने रणनीति बदल ली है. मुख्यमंत्री चेहरे के बजाय पार्टी ‘सामूहिक नेतृत्व’ और ‘मोदी फैक्टर’ के भरोसे ही चुनावी मैदान में उतरेगी. इस बीच पार्टी के सूत्रों ने NDTV को इस साल कर्नाटक और हिमाचल चुनाव में मिली करारी हार से उबरने और इस महीने की शुरुआत में हुए उपचुनाव में विपक्षी गठबंधन INDIA के प्रदर्शन को काउंटर करने के प्लान की डिटेल बताई है.

सूत्रों ने कहा है कि भारतीय जनता पार्टी (BJP) क्षेत्रीय नेताओं की महत्वाकांक्षाओं और प्रतिद्वंद्विता को कंट्रोल में रखने और पार्टी को मजबूत करने की कोशिश में हिंदी भाषी राज्यों (मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़) में सीएम पद के उम्मीदवार को पेश नहीं करेगी. पार्टी इन राज्यों में सामूहिक नेतृत्व पर चुनाव लड़ेगी.

बीजेपी की ये रणनीति पार्टी में भाई-भतीजावाद पर अंकुश लगाने और वंशवाद की राजनीति के तंज से बचने की भी है. खासकर जब से यह आरोप कांग्रेस को लेकर लगाया जाता है. सूत्रों ने बताया कि पार्टी अब प्रति परिवार एक टिकट देगी.

इन योजनाओं की एक झलक इस सप्ताह मध्य प्रदेश में पेश की गई. चार सांसद, तीन केंद्रीय मंत्री और राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय इस बार मध्य प्रदेश का विधानसभा चुनाव लड़ेंगे. जबकि मौजूदा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के लिए (अभी तक) कोई टिकट का ऐलान नहीं हुआ है.

मध्य प्रदेश चुनाव की तैयारी के संदर्भ में सूत्रों ने बताया कि सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों को मैदान में उतारना सामूहिक नेतृत्व का संदेश देता है. उस संदेश को आज भी रेखांकित किया गया. सूत्रों का कहना है कि पार्टी को उम्मीद है कि अपनी बेस्ट टीम को मैदान में उतारने से उसे कांग्रेस पर बढ़त मिलेगी. साथी ही इनमें से प्रत्येक राज्य में अनुभवी नेताओं को पांच साल पहले हारी हुई सीटों को पलटने का काम सौंपा जाएगा.

मध्य प्रदेश की तर्ज पर ही बीजेपी बाकी राज्यों यानी राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में कांग्रेस को उखाड़ फेंकने के लिए इसी दृष्टिकोण का इस्तेमाल करेगी.

बीजेपी की राजस्थान विधानसभा चुनाव योजना
राजस्थान में संभावित मुख्यमंत्री चेहरों में केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत और अर्जुन राम मेघवाल शामिल हैं. इसके साथ ही राज्यसभा सांसद डॉ. किरोड़ी लाल मीना, लोकसभा सांसद दीया कुमार, राज्यवर्धन राठौड़ और सुखवीर सिंह जौनपुरिया का नाम भी इस रेस में है.

दो बार मुख्यमंत्री रहीं और सिंधिया राजपरिवार की सदस्य 70 वर्षीय वसुंधरा राजे की इस चुनाव में वापसी की संभावना नहीं है. भले ही उन्हें राज्य में बीजेपी की सबसे बड़ी और सबसे प्रभावशाली नेता के रूप में देखा जाता हो. पार्टी वसुंधरा राजे को कैसे संभालती है, यह महत्वपूर्ण होगा. क्योंकि राजे लगभग निश्चित रूप से किसी अन्य मुख्यमंत्री के अधीन विधायक के रूप में विधानसभा में बैठना नहीं पसंद करेंगी.

अब बात छत्तीसगढ़ की. यहां बीजेपी ने अलग राह चुनी है. बीजेपी ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के भतीजे विजय को शीर्ष पद के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है. पार्टी चाहेगी कि पारिवारिक विभाजन उसके पक्ष में हो, क्योंकि उसने ‘बघेल बनाम बघेल मुकाबले’ की योजना बनाई है.

छत्तीसगढ़ में बघेल बनाम बघेल
विजय बघेल लोकसभा सांसद हैं. वह दुर्ग जिले के पाटन से चुनाव लड़ेंगे. इस सीट पर 2003 से भूपेश बघेल और विजय बघेल के बीच मुकाबला चल रहा है. भूपेश बघेल इस सीट से पिछले दो चुनाव जीत चुके हैं. बीजेपी के अन्य संभावित उम्मीदवारों में केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह और राज्यसभा सांसद सरोज पांडे शामिल हैं. गौरतलब है कि बीजेपी ने अभी तक अपनी लिस्ट में पूर्व मुख्यमंत्री रमन सिंह का नाम नहीं शामिल किया है. ऐसे में सवाल है कि क्या बीजेपी इस बार रमन सिंह पर दांव लगाएगी?

तेलंगाना के लिए बीजेपी की लड़ाई
तेलंगाना में बीजेपी का झुकाव उसकी ‘मिशन साउथ’ योजना का हिस्सा है. दक्षिण भारत में सरकार बनाने में जुटी बीजेपी इस बार कोई कोर कसर नहीं रखना चाहती. दक्षिण भारत की ओर से अक्सर पार्टी के कट्टर राष्ट्रवादी एजेंडे को खारिज कर दिया गया है.

पार्टी के पास कर्नाटक तो था, लेकिन उसकी लड़खड़ाती सरकार को इस साल की शुरुआत में कांग्रेस ने शानदार बहुमत से हटा दिया. केरल बीजेपी के आकर्षण से पूरी तरह अछूता रहा है. तमिलनाडु ने भी प्रधानमंत्री मोदी की पार्टी को खारिज कर दिया है. मंगलवार को AIADMK भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाले एनडीए से बाहर हो गई. तेलंगाना और आंध्र प्रदेश भी बीजेपी के लिए मुश्किल साबित हुए हैं.

मिजोरम में मणिपुर की जातीय हिंसा का प्रभाव
इस साल मिजोरम में भी चुनाव हैं. पड़ोसी राज्य मणिपुर में जातीय हिंसा के प्रभाव के कारण यहां बीजेपी को संभावित रूप से एक अलग तरह की चुनौती का सामना करना पड़ रहा है.

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