भगवान शिव का श्रंगार बहुत ही रहस्यमयी और सबसे अलग है। उसमें नाग, भस्म, जहरीले और जंगली फूल और पत्ते शामिल हैं। ऐसा श्रंगार बताता हैं कि भगवान शिव उन सभी को भी अपनाते हैं। जिसे लोगों ने अपने से दूर कर रखा हो। यानी जो चीजें किसी काम की नहीं वो भी भगवान शिव खुद पर धारण कर लेते हैं।
जिसे लोग त्याग देते हैं उसे शिव अपनाते हैं
भगवान शिव श्रंगार के रूप में धतूरा और बेल पत्र स्वीकारते हैं। शिवजी का यह उदार रूप इस बात की ओर इशारा करता है कि समाज जिसे तिरस्कृत कर देता है, शिव उसे स्वीकार लेते हैं। शिव पूजा में धतूरे जैसा जहरीला फल चढ़ाने के पीछे भी भाव यही है कि व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में बुरे व्यवहार और कड़वी बाते बोलने से बचें। स्वार्थ की भावना न रखकर दूसरों के हित का भाव रखें। तभी अपने साथ दूसरों का जीवन सुखी हो सकता है।
मन की कड़वाट का त्याग
भगवान शिव को धतूरा प्यारा होने की बात में भी संदेश यही है कि शिवालय में जाकर शिवलिंग पर धतूरा चढ़ाकर मन और विचारों की कड़वाहट निकालने और मिठास को अपनाने का संकल्प लेना चाहिए। ऐसा करना ही भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए सच्ची पूजा होगी।
धार्मिक महत्व: देवी भागवत पुराण के अनुसार
धार्मिक नजरिये से इसका कारण देवी भागवत पुराण में बताया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार शिवजी ने जब समुद्र मंथन से निकले हालाहल विष को पी लिया था तो वह व्याकुल होने लगे। तब अश्विनी कुमारों ने भांग, धतूरा, बेल जैसी औषधियों से शिव जी की व्याकुलता दूर की। उस समय से ही शिव जी को भांग धतूरा प्रिय है। जो भी भक्त शिव जी को भांग धतूरा अर्पित करता है, शिव जी उस पर प्रसन्न होते हैं।