शिवसेना के उद्धव गुट और शिंदे गुट के बीच विवाद पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल पर भी सवाल उठाए. कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल ऐसी शक्ति का इस्तेमाल नहीं कर सकते, जो संविधान या कानून ने उन्हें नहीं दी है.

नई दिल्ली: 

शिवसेना (उद्धव गुट) बनाम शिवसेना (शिंदे गुट) विवाद में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने फैसला सुनाया, और साफ कर दिया कि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे सरकार बनी रहेगी. सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले ने उद्धव ठाकरे गुट को झटका ज़रूर दिया, लेकिन साथ ही कुछ ऐसी बातें भी कहीं, जिनसे उन्हें कुछ राहत ज़रूर मिलेगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल का फ्लोर टेस्ट का फ़ैसला गलत था, और अगर उद्धव ठाकरे ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं दिया होता, तो उन्हें राहत दी जा सकती थी. सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि उद्धव सरकार को बहाल नहीं किया जा सकता, क्योंकि उन्होंने स्वेच्छा से इस्तीफा दिया था, और फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया था, इसलिए उनके इस्तीफे को रद्द नहीं कर सकते. कोर्ट ने विधानसभा स्पीकर से 16 बागी विधायकों की अयोग्यता के मुद्दे का समयसीमा के भीतर निपटारा करने के लिए भी कहा.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, गोगावले को व्हिप की मान्यता नहीं दी जानी चाहिए थी
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि यह मानना कि विधायक दल ही व्हिप नियुक्त करता है, राजनीतिक दल के एमबिलिकल को तोड़ना होगा. कोर्ट ने कहा कि इसका मतलब है कि विधायकों का समूह राजनीतिक दल से अलग हो सकता है. पार्टी द्वारा व्हिप नियुक्त किया जाना 10वीं अनुसूची के लिए महत्वपूर्ण है. कोर्ट ने कहा कि स्पीकर को केवल राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त व्हिप को ही मान्यता देनी चाहिए. स्पीकर को गोगावले को व्हिप की मान्यता नहीं देनी चाहिए थी. सुप्रीम कोर्ट ने माना कि शिवसेना – पार्टी के व्हिप के रूप में गोगावाले (शिंदे समूह द्वारा समर्थित) को नियुक्त करने का स्पीकर का फैसला अवैध था.

व्हिप केवल विधायी राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त किया जा सकता है : सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिंदे के बयान का संज्ञान लेने पर स्पीकर ने व्हिप कौन था, इसकी पहचान करने का काम नहीं किया. उन्हें जांच करनी चाहिए थी. गोगावाले को मुख्य सचेतक नियुक्त करने का निर्णय अवैध था. व्हिप केवल विधायी राजनीतिक दल द्वारा नियुक्त किया जा सकता है. सीजेआई ने कहा कि यह मानना कि चुनाव आयोग को सिंबल के आदेश तय करने से रोक दिया गया, चुनाव आयोग के समक्ष अनिश्चितकाल तक कार्यवाही को रोकने जैसा होगा. साथ ही स्पीकर के लिए निर्णय लेने का समय अनिश्चित होगा. ईसीआई के पास चुनाव प्रक्रिया पर निगरानी और नियंत्रण है. इसे लंबे समय तक संवैधानिक कर्तव्य का इस्तेमाल करने से नहीं रोका जा सकता है.

गवर्नर की भूमिका के बारे में भी हमनें विस्तार से आदेश में लिखा है : CJI
कोर्ट ने कहा कि स्पीकर के समक्ष अयोग्यता की कार्यवाही को ECI के समक्ष कार्यवाही के साथ नहीं रोका जा सकता. यदि अयोग्यता का निर्णय ECI के निर्णय के लंबित होने पर किया जाता है और ECI का निर्णय पूर्वव्यापी होगा और यह कानून के विपरीत होगा. सीजेआई ने कहा कि गवर्नर की भूमिका के बारे में भी हमनें विस्तार से आदेश में लिखा है. क्योंकि याचिकाकर्ता ने गवर्नर की भूमिका पर सवाल उठाया है. गवर्नर ने कहा था कि एक गुट शिवसेना से निकल सकता है, अविश्वास प्रस्ताव विधानसभा में नहीं था. क्योंकि उस समय विधानसभा नहीं चल रही थी.

राज्यपाल को इस पत्र पर भरोसा नहीं करना चाहिए था : SC
कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल ये नहीं समझ सकते थे कि उद्धव ठाकरे बहुमत खो चुके हैं. गवर्नर के समक्ष ऐसा कोई दस्तावेज नहीं था, जिसमें कहा गया कि वो सरकार को गिराना चाहते हैं. केवल सरकार के कुछ फैसलों में मतभेद था. गवर्नर ने शिंदे और समर्थक विधायकों की सुरक्षा को लेकर पत्र आया. राज्यपाल को इस पत्र पर भरोसा नहीं करना चाहिए था. क्योंकि इसमें कहीं नहीं कहा गया था सरकार बहुमत में नहीं रही.

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