शुक्ल और कृष्णपक्ष की तेरहवीं तिथि को प्रदोष कहते हैं, इस बार गुरुवार के संयोग में शिव पूजा से मिलेगी दुश्मनों पर जीत
इस बार सावन महीने का पहला प्रदोष व्रत 5 अगस्त, गुरुवार को है। शिव और स्कंद पुराण के मुताबिक सावन महीने की तेरहवीं तिथि यानी त्रयोदशी पर भगवान शिव की विशेष पूजा से हर तरह की परेशानी दूर हो जाती है। ये पूजा प्रदोष काल यानी सूर्यास्त से तकरीबन 90 मिनिट तक के बीच की जाती है। गुरुवार के दिन त्रयोदशी होने से इस दिन गुरु प्रदोष का संयोग बन रहा है। इस संयोग में शिव पूजा से दुश्मनों पर जीत होती है और पितरों को तृप्ति मिलती है
प्रदोष काल में कैलाश पर नृत्य करते हैं शिव
स्कंद पुराण में बताया है कि त्रयोदशी तिथि में शाम के समय को प्रदोष कहा गया है। इस वक्त भगवान शिव कैलाश पर्वत के रजत भवन में नृत्य करते हैं और देवता उनके गुणों का स्तवन करते हैं। इसलिए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की इच्छा से इस शुभ काल में भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए। इस दिन भगवान शिव के साथ देवी पार्वती की भी पूजा होती है। जिससे हर तरह की परेशानियां और दुख खत्म हो जाते हैं।

सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में पूजा
पुराणों और ज्योतिष ग्रंथों के मुताबिक प्रदोष व्रत में सूर्यास्त के बाद तकरीबन 90 मिनिट के समय को प्रदोष काल कहा जाता है। इस दौरान भगवान शिव-पार्वती की विशेष पूजा की परंपरा है। प्रदोष काल में की गई पूजा से शारीरिक, मानसिक और आर्थिक परेशानियां भी दूर हो जाती हैं। इस बार गुरुवार का शुभ संयोग बनने पर शिव पूजा का कई गुना शुभ फल मिलेगा।

पूजा विधि: पंचामृत से रूद्राभिषेक
सूर्यास्त होने के पहले नहा लें। इसके बाद पूजा की तैयारी करें। प्रदोष काल शुरू होने पर भगवान शिव का अभिषेक करें। इसके लिए पंचामृत का इस्तेमाल भी करना चाहिए। फिर चंदन, अक्षत, अबीर-गुलाल, बिल्वपत्र, धतूरा, मदार के फूल और अन्य पूजा सामग्री चढ़ाएं। इसके बाद भगवान शिव की धूप व दीपक से आरती करें। महादेव को भोग लगाएं।

व्रत विधि: शाम को शिव पूजा के बाद भोजन
इस दिन सूर्योदय से पहले नहा लें। फिर शिव मंदिर या घर पर ही पूजा स्थान पर बैठकर हाथ में जल लें और प्रदोष व्रत के साथ शिव पूजा का संकल्प लें। इसके बाद शिवजी की पूजा करें। फिर पीपल में जल चढ़ाएं। दिनभर प्रदोष व्रत के नियमों का पालन करें। यानी शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह सात्विक रहें। भोजन न करें। फलाहार कर सकते हैं। फिर शाम को महादेव की पूजा और आरती के बाद प्रदोष काल खत्म होने पर यानी सूर्यास्त से 72 मिनिट बाद भोजन कर सकते हैं।

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