चीता पुनर्स्थापन परियोजना के तहत चीतों को केएनपी में लाये जाने से पहले कुछ विशेषज्ञों ने वहां जगह की कमी को लेकर संदेह जताया था. केएनपी का ‘कोर एरिया’ 748 वर्ग किलोमीटर और बफर जोन 487 वर्ग किलोमीटर है.

भोपाल: 

मध्य प्रदेश वन विभाग ने केंद्र से कूनो राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) में लाये गये चीतों के लिए संसाधन एवं जगह की कमी का हवाला देते हुए उनके लिए एक वैकल्पिक स्थल की मांग की है. उल्लेखनीय है कि केएनपी में एक महीने से भी कम समय में दो चीतों की मौत हो गई है. प्रदेश के एक वरिष्ठ वन अधिकारी ने नाम उजागर नहीं करने की शर्त पर बताया कि पिछले साल सितंबर से नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से दो जत्थों में लाए गए 20 चीतों के रख-रखाव के लिए उनके पास पर्याप्त संसाधन (लॉजिस्टिक सपोर्ट) नहीं है.

अधिकारी ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘‘हमें चौबीस घंटे एक चीते पर नजर रखने के लिए नौ कर्मचारियों की आवश्यकता है. हमारे पास पर्याप्त कर्मचारी नहीं हैं.” चीतों के लिए जगह की कमी के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यह मुद्दा गौण है, हमें ‘न केवल जगह, बल्कि बहुत सारे संसाधनों की आवश्यकता है. गौरतलब है कि चीता पुनर्स्थापन परियोजना के तहत चीतों को केएनपी में लाये जाने से पहले कुछ विशेषज्ञों ने वहां जगह की कमी को लेकर संदेह जताया था. केएनपी का ‘कोर एरिया’ 748 वर्ग किलोमीटर और बफर जोन 487 वर्ग किलोमीटर है.

एक दिन पहले रविवार को केएनपी में एक महीने से भी कम समय में दूसरे चीते की मौत हो गई. जिस चीते की मौत हुई उसका नाम उदय था और वह छह साल का था. उसे इस साल फरवरी में दक्षिण अफ्रीका से स्थानांतरित किया गया था. एक अधिकारी ने बताया था कि इस चीते की मौत के सही कारण की जानकारी अभी नहीं मिली है. इस घटना को महत्वाकांक्षी चीता पुनर्स्थापन परियोजना के लिए एक बड़े झटके के रूप में देखा जा रहा है. चीता पुनर्स्थापन परियोजना के तहत सितंबर 2022 में नामीबिया से आठ चीतों और इस साल फरवरी में दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों को मध्य प्रदेश के श्योपुर जिले के केएनपी में स्थानांतरित किया गया था.

नामीबिया के आठ चीतों में से साशा नाम के एक चीते की 27 मार्च को केएनपी में गुर्दे की बीमारी के कारण मौत हो गई. उसकी उम्र साढ़े चार साल से अधिक थी. सियाया नाम के एक अन्य चीता ने हाल ही में केएनपी में चार शावकों को जन्म दिया. इसके अलावा, चीता ओबान, जिसका नाम अब पवन रखा गया है, कई बार भटक कर केएनपी से बाहर निकल चुका है. मध्य प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) जे एस चौहान ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि उनके विभाग ने राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) को पत्र लिखकर चीतों के लिए वैकल्पिक स्थान का अनुरोध किया है. एनटीसीए भारत में चीता पुनर्स्थापन परियोजना की निगरानी कर रही है.

उन्होंने कहा, ‘‘हमने कुछ दिन पहले पत्र लिखा है.” वन अधिकारियों के अनुसार पत्र में मांग की गई है कि केंद्र चीतों के लिए वैकल्पिक स्थल पर निर्णय ले. एक अधिकारी ने कहा, ‘‘अगर हम मध्य प्रदेश में गांधी सागर अभयारण्य या नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य जैसे अपने स्थलों को चीतों के लिए वैकल्पिक स्थलों के रूप में विकसित करना शुरू करते हैं, तो इसमें क्रमश: दो साल और तीन साल लगेंगे.”

उन्होंने कहा, ‘‘केंद्र सरकार को प्रमुख भूमिका निभानी है. हमें आगे बढ़ने के लिए केंद्र से एक नोट की आवश्यकता है. हमें केंद्र से हस्तक्षेप की सख्त जरूरत है. अगर वे निर्णय नहीं लेते हैं, तो यह चीता परियोजना के हित के लिए हानिकारक होगा.” अधिकारी ने कहा, ‘‘हम केएनपी में सभी 18 चीतों को जंगल में नहीं छोड़ सकते.” कुछ वन्यजीव विशेषज्ञों के अनुसार एक चीता को 100 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र की आवश्यकता होती है.

हालांकि, केएनपी के निदेशक उत्तम शर्मा ने कहा, ‘‘चीता सात दशक पहले भारत से विलुप्त हो गया था. इस तथ्य को देखते हुए कि कोई भी नहीं जानता कि चीता को कितनी जगह की आवश्यकता होती है. वास्तव में हम नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से चीतों के स्थानांतरण के बाद उनके बारे में सीख रहे हैं.”

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