कृषि छात्रों ने जलवायु परिवर्तन की दुष्प्रभावों तथा नियंत्रण के उपायों को जाना
कैरियर काउंसलिंग एवं व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम के तहत छह दिवसीय परिसंवाद श्रृंखला सम्पन्न

इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने कहा है कि जलवायु परिवर्तन आज विश्व की समक्ष एक बहुत बडी चुनौती है जिसका पर्यावरण, पारिस्थितिकीतंत्र तथा सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था पर गहन प्रभाव पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि जलवायु परिवर्तन के कारण मानव सहित जीव-जन्तुओं की सभी प्रजातियां प्रभावित हो रही है तथा पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है। बढ़ते तापमान, घटती वर्षा तथा मौसमचक्र में परिवर्तन से फसलों का उत्पादन कम होने की आशंका है। इन चुनौतियों का सामना करने के लिए कृषि वैज्ञानिकों को नये अनुसंधान कर विभिन्न फसलों की जलवायु लचीली नवीन किस्मों का विकास करना होगा। डॉ. चंदेल आज कृषि महाविद्यालय रायपुर के सभा कक्ष में आयोजित 6 दिवसीय कैरियर काउंसलिंग एवं व्यक्तित्व विकास कार्यक्रम के समापन दिवस पर ‘‘जलवायु परिवर्तन के दौर में स्थायी विकास’’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी को संबोधित कर रहे थे। संगोष्ठी में विषय विशेषज्ञ के रूप में त्रिशांत देव तथा श्री पुष्कर प्रसून ने विद्यार्थियों को जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों, इनसे पडने वाले दुष्प्रभाओं तथा जलवायु परिवर्तन के नियंत्रण हेतु वैश्विक स्तर पर किये जा रहे प्रसायों के बारे में जानकारी दी।
संगोष्ठी के मुख्य वक्ता श्री त्रिशांत देव ने छात्रों को बताया कि जलवायु परिवर्तन के कारण पूरी दुनिया को आने वाले वर्षाें में गंभिर समस्याओं का सामना करना पडेगा। दुनिया के कुछ हिस्सों में बहुत ज्यादा गर्मी और कुछ हिस्सों में बहुत ज्यादा ठंड पडने की संभावना है, इसी प्रकार कहीं अत्यधिक वर्षा के काराण बाढ़ तो कहीं कम वर्षा के कारण सूखा पडने की आशंका है। ग्लोबल वार्मिंग के कारण मीथेन, कार्बन डाईऑक्साईड तथा सल्फर डाईऔक्साईड जैसी गैंसों का उत्सर्जन बढ़ेगा। ग्लेशियर के पिघलने से समुद्र का स्तर बढ़ने से कई तटवर्तीय शहरों के डूबने की आशंका है। बढ़ते तापमान एवं लू चलने से फसलों का उत्पादन प्रभावित होगा। उन्होंने कहा कि इस वर्ष उत्तर भारत के कुछ राज्यों में फरवरी में ही तापमान 40 डिग्री सेंटीग्रेड पहुुंचने से गेहूं के उत्पादन में 10 प्रतिशत तक कमी आने की आशंका वैज्ञानिकों द्वारा व्यक्त की गई है। सूखा पडने से पीने के पानी की कमी होगी तथा अनेक खतरनाक बैक्टिरिया एवं वायरसजनित रोगों का प्रकोप बढ़ने की आशंका है। उन्होंने कहा कि इस संबंध में दुनियाभर के वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री तथा समाजशास्त्री चिंतित हैं तथा इस संबंध में वैश्विक स्तर पर अनेक प्रयास किये जा रहे हैं, जिनमें क्योटो प्रोटोकॉल, पैरिस प्रोटोकॉल, नगोया प्रोटोकॉल आदि शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभावों को रोकने में विभिन्न देशों की सरकारें, अन्तर्राष्ट्रीय संगठन, वैज्ञानिकों के साथ ही आम जनता को भी अपनी भूमिका सुनिश्चित करनी होगी। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि कृषि महाविद्यालय के अधिष्ठाता डॉ. जी.के. दास थे और अध्यक्षता अधिष्ठाता छात्र कल्याण डॉ. संजय शर्मा ने की।
उल्लेखनीय है कि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय में संचालित कैरियर डेव्हलपमेंट सेन्टर द्वारा भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद, राष्ट्रीय कृषि उच्च शिक्षा परियोजना (छ।भ्म्च्), भारतीय कृषि प्रबंधन अकादमी (छ।।त्ड), के सहयोग से कृषि विद्यार्थियों के लिए ‘‘कैरियर काउंसलिंग एवं व्यक्तित्व विकास’’ के तहत छह दिवसीय परिसंवाद श्रृंखला का आयोजन किया गया। इस छह दिवसीय परिसंवाद श्रंृखला के तहत 16 से 23 फरवरी, 2023 तक कैरियर काउंसलिंग एवं व्यक्तित्व विकास के अंतर्गत विभिन्न विषयों पर विषय विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान दिया गया। परिसंवाद श्रृंखला के अंतर्गत प्रथम दिवस ‘खेलकूद से स्वस्थ समाज का निर्माण’ विषय पर डॉ. चन्द्रकांत आगाशे द्वारा विद्यार्थियों को व्याख्यान दिया गया। द्वितीय दिवस ‘रोजगार के भावी स्वरूप पर आधारित कौशल विकास’ विषय पर श्री अरविंद अग्रवाल द्वारा विशेष व्याख्यान दिया गया था। परिसंवाद श्रृंखला के तृतीय दिवस ‘स्थायी विकास में विश्वशांति की भूमिका’ विषय पर डॉ. आर.के. पुरोहित द्वारा व्याख्यान दिया गया। चतुर्थ दिवस श्री छबिराम साहू द्वारा ‘योग एवं आयुर्वेद आधारित युवा विकास’ विषय पर व्याख्यान दिया गया। परिसंवाद श्रृंखला के पांचवे दिन डॉ. सुभाष चन्द्राकर ने ‘लोकतंत्र में युवाओं की भागीदारी’ विषय पर व्याख्यान दिया गया। गूगल फॉम के तहत पंजीकृत प्रतिभागियों को ई-प्रमाण पत्र प्रदान किया गया। इस परिसंवाद श्रंृखला का यूट्यूब पर भी लाईव टेलीकास्ट भी किया गया। इस 6 दिवसीय परिसंवाद श्रृखला के कार्यक्रम समन्वयक डॉ. आर.आर. सक्सेना, डॉ. अकरम खान, डॉ. जितेन्द्र सिन्हा, डॉ. रामा मोहन सावू, डॉ. शुभा बैनर्जी, डॉ. दीप्ति झा, डॉ. दीपक गौरहा, डॉ. हर्ष पौराणिक, डॉ. रवि श्रेय, डॉ. आर.के. ठाकुर, सुश्री कल्पना बैनर्जी थे। कार्यक्रम का संचालन डॉ. शुभा बैनर्जी ने किया। इस अवसर पर विभिन्न विभागों के प्राध्यापक, वैज्ञानिकगण एवं बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं उपस्थित थे।

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