पूरे देश में अगस्त माह का पहला सप्ताह ’विश्व स्तनपान सप्ताह’ के रूप में मनाया जा रहा है। इस दौरान प्रदेश में प्रसूता एवं शिशुवती महिलाओं के बीच स्तनपान को बढ़ावा देने, शिशुओं एवं नन्हें बच्चों को रूग्णता एवं कुपोषण से बचाने एवं शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के उद्देश्य से स्वास्थ्य और महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा संयुक्त जन-जागरूकता के कई कार्यक्रम आयोजित किये जा रहे हैं। इसी कड़ी में यूनिसेफ के सहयोग से स्तनपान का महत्व, उसमें परिवार और समाज के जिम्मेदारी और संबंधित कानूनों के बारे में जानकारी देने उन्मुखीकरण वेबिनार का आयोजन किया गया, जिसमें लगभग विभागीय 800 मैदानी अमले सहित यूनिसेफ के प्रतिनिधि जुड़े। महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा इस वेबिनार का फेसबुक लाईव भी किया गया, जिससे आमजनता तक जानकारी पहुंच सके।
वेबिनार में यूनिसेफ के फील्ड ऑफिसर श्री जॉब जकारिया ने बताया कि मां का दूध जीवन में जादू की गोली की तरह काम करता है। मां का दूध शिशु को कुपोषण, डायरिया, निमोनिया जैसे कई प्रकार की बीमारियों से बचाता है। यह डायरिया की 54 प्रतिशत और 32 प्रतिशत श्वसन संक्रमणों को रोकता है। इससे बच्चों का मानसिक विकास अच्छा होता है, जिन बच्चों को अच्छी तरह स्तनपान कराया गया उनका आईक्यू स्तर अधिक पाया गया है। ऐसे बच्चों कोे व्यस्क होने पर मोटापे और मधुमेह का खतरा भी कम होता है। उन्होंने कहा कि इतना फायदा होने के बाद भी स्तनपान महिला की ही जिम्मेदारी होती है। समान्यतः देखा गया है कि परिवार या समाज द्वारा उन्हें पर्याप्त समय नहीं दिया जाता। शासकीय कार्यालयों में प्रसव उपरांत छुट्टी मिलती है, लेकिन प्रायवेट संस्थानों में इस ओर ध्यान दिए जाने की जरूरत है। उन्होंने बताया कि दादी-नानी और स्थानीय बुजुर्ग महिलाएं स्तनपान को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है, जैसे दंतेवाड़ा जिले में बुजुर्ग दादियां (बापी) कर रही है।
महिला एवं बाल विकास विभाग के श्री सुनील शर्मा ने कहा कि माताओं को परिवार, कार्य स्थल, अस्पताल और समाज से सहारे की जरूरत है। बच्चे का स्वस्थ विकास सबकी साझी जिम्मेदारी है। रायपुर के शासकीय नर्सिंग कॉलेज की सहायक प्रध्यायापक और नेेशनल ट्रेनर सुश्री सपना ठाकुर ने स्तनपान और उससे संबंधित कानूनों के बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि शिशुओं के लिए स्तनपान सर्वाेत्तम होता है। इसके महत्व को लोगों तक पहुंचाने से धीरे-धीरे बड़ा परिवर्तन दिखाई देगा। उन्होंने बताया कि शिशु दुग्ध विकल्प अधिनियम (आईएमएस) के तहत बाजार में मिलने वाले डब्बा बंद शिशु आहार को मां के दूध जितना पोषक होने का दावा करना, उसका प्रचार प्रसार करना और नर्सिंग होम या अस्पताल में मां के सामने बच्चे को ऐसा आहार देना कानूनन जुर्म है। स्वास्थ्य विभाग के राज्य कार्यक्रम अधिकारी श्री यू.आर. भगत ने बताया कि राज्य में संस्थागत प्रसव 90 प्रतिशत है, लेकिन जन्म के एक घंटे के अंदर शिशु को स्तनपान कराने का प्रतिशत 47 प्रतिशत ही है। इसे बढ़ाने की जरूरत है। यूनिसेफ के कम्यूनिकेशन स्पेशलिस्ट श्री अभिषेक ने बताया कि जन्म के एक घंटे के अंदर नवजात को मां का दूध पिलाना जरूरी है। शिशु को छह महीने तक सिर्फ मां का दूध दिया जाना चाहिए, पानी भी नहीं देना चाहिए। छह महीने बाद मां के दूध के साथ बाहरी आहार दिया जा सकता है। वेबिनार में यूनिसेफ के डॉ. कुणाल पवार, श्री महेन्द्र सहित अन्य विशेषज्ञों ने स्तनपान के महत्व पर जानकारी दी।