नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बोर्ड परीक्षाओं का सामना करने जा रहे बच्चों से एक बार फिर बातें करने और उनका साहस बढ़ाने के साथ-साथ कामयाबी के गुर सिखाने के लिए ‘परीक्षा पे चर्चा’ कार्यक्रम के छठे संस्करण में मौजूद हैं. समस्याओं और चिंताओं को लेकर बच्चों द्वारा पूछे गए सवालों के जवाब में प्रधानमंत्री ने बहुत-सी अच्छी बातें कहीं, जिनमें से कुछ बड़ी बातें निम्नलिखित हैं…
- ‘परीक्षा पे चर्चा’ मेरी भी परीक्षा है… कोटि-कोटि बच्चे मेरी परीक्षा ले रहे हैं… मुझे इस परीक्षा को देने में आनंद आता है… ‘परीक्षा पे चर्चा’ मेरे लिए बड़ा ख़ज़ाना है, क्योंकि बच्चे मुझे निजी समस्याएं भी बताते हैं, और मेरे देश का युवा क्या-क्या सोचता है, इसमें मेरी रुचि…
- परिवार के लोगों को अपेक्षा होना स्वाभाविक है, गलत कतई नहीं… लेकिन स्टेटस की वजह से अपेक्षा चिंता का विषय है… इस तरह के दबाव से क्या डरना, अपने भीतर झांकें बच्चे, और हमें दबाव से दबना नहीं चाहिए…
- हार्ड वर्क बेहद अच्छी चीज़ है, लेकिन स्मार्ट तरीके से हार्डवर्क ज़्यादा लाभ देता है, सो, बहुत सोच-समझकर, प्लान बनाकर मेहनत करें… पढ़ाई को ज़्यादा वक्त दें, तो बेहतर रहेगा…
- मां-बाप आलोचना नहीं करते, टोका-टाकी करते हैं, जो आप ही के भले के लिए होती है… सो, उससे विचलित न हों, उत्साहित हों… वैसे, टोका-टाकी से माता-पिता को भी बचना चाहिए…
- समय का ध्यान रखना बेहद अहम है… पढ़ाई के लिए समय निकालने की खातिर अपनी मां को रोज़मर्रा के कामकाज के लिए समय निकालते हुए देखें, जो हर काम को उसी वक्त में कर पाती हैं, सो, उनका टाइम मैनेजमेंट बेहद प्रेरणादायक है…
- पतंग का मांझा गुच्छा बन जाता है, और उसे सुलझाने के लिए बुद्धिमान इंसान ताकत नहीं लगाता, दिमाग लगाता है कि यह कहां से खुलेगा, सो, हर समस्या का इलाज दिमाग लगाकर ढूंढें…
- दुनियाभर में भारत आशा की किरण है, और कुछ सालों पहले तक औसत माना जाने वाला भारत देश अब दुनियाभर में चमक रहा है…
- औसत लोग चिंतित नहीं हों, क्योंकि दुनिया में ज़्यादातर लोग औसत ही होते हैं, और बहुत प्रखर लोग बेहद कम होते हैं…
- एक परीक्षा में पीछे रह जाने से ज़िन्दगी खत्म नहीं हो जाती है… डगर-डगर परीक्षा देनी पड़ती है, सो, नकल करने वाले हर जगह कामयाब नहीं हो सकते, क्योंकि वे कहां-कहां नकल कर सकेंगे… नकल से ज़िन्दगी नहीं बनती… जो लोग मेहनत करते हैं, उनसे कहूंगा – मेहनत ही आपकी ज़िन्दगी में रंग लाएगी… कोई नकल से नंबर ज़्यादा ला सकता है, लेकिन आपकी ज़िन्दगी में रुकावट नहीं बन पाएगा…
- भारत में लोग औसतन छह घंटे स्क्रीन पर बिताते हैं… जिनका काम है, उनका तो ठीक है, बाकी के लिए चिंता का विषय है… गैजेट हमें गुलाम बना देता है, और हम उनके गुलाम बनकर जी नहीं सकते, हमें सचेत रहना चाहिए… मैंने मोबाइल फोन का समय तय कर रखा है… मेरे हाथ में आपने कभी-कभार ही मोबाइल फोन देखा होगा… हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम गैजेट का गुलाम नहीं बनेंगे… सप्ताह में एक दिन डिजिटल फास्टिंग कीजिए, या दिन में कुछ घंटे डिजिटल फास्टिंग कीजिए…