राजधानी के मेकाहारा अस्पताल से एक अनोखा मामला सामने आया है। यहां एक महिला पेट दर्द की शिकायत लेकर अस्पताल पहुंची। जांच के बाद पता चला कि महिला को लिथोपेडियन है। दरअसल भ्रूण का विकास बच्चेदानी के अंदर होता है, लेकिन यह बच्चा बच्चेदानी के बाहर एवं पेट के अंदर विकसित हो रहा था। मेडिकल भाषा में इसे लिथोपेडियन या स्टोन बेबी कहा जाता है।

गरियाबंद निवासी एक 26 वर्षीय महिला कुछ दिनों पूर्व पेट दर्द और पेट में पानी भरने के कारण होने वाले सूजन एसाइटिस की समस्या के साथ चिकित्सा महाविद्यालय के स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग में भर्ती हुई थी। जांच में महिला के पेट में दुर्लभ लिथोपेडियन का पता चला। स्टोन बेबी को बाहर निकालने के लिए पेट की सर्जरी की गई। करीब सात महीने के विकसित दुर्लभ स्टोन बेबी (मृत) को बाहर निकाला गया। सर्जरी के बाद महिला की पेट संबंधित परेशानी खत्म हो गई। अब वह डिस्चार्ज होकर घर जाने के लिए तैयार है।

स्टोन बेबी तब बनता है, जब गर्भाशय के बजाय पेट में प्रेगनेंसी होती है। जब यह गर्भावस्था अंततः विफल हो जाती है। चूंकि भ्रूण गर्भाशय के बाहर विकसित हो रहा होता है, इसलिए उसे पर्याप्त रक्त नहीं मिल पाता है। शरीर के पास भ्रूण को बाहर निकालने का कोई तरीका नहीं होता है। नतीजन, शरीर अपनी स्वयं की प्रतिरक्षा प्रक्रिया का उपयोग करके भ्रूण को पत्थर में बदल देता है। इससे शरीर को कोई नुकसान नहीं होता, लेकिन कई बार इसके पेट के अंदर रहने के कारण दूसरी समस्याएं भी जन्म लेने लगती हैं। ऑपरेशन में ज्यादा दिक्कतें नहीं आईं, क्योंकि पेट के अंदर बेबी ने आस-पास के अंगों को प्रभावित नहीं किया था। इस ऑपरेशन में डॉ. ज्योति जायसवाल के साथ डॉ. रुचि गुप्ता, डॉ. स्मृति नाईक और डॉ. प्रियांश पांडे, एनेस्थीसिया से डॉ. मुकुंदा शामिल रहे।

विभागाध्यक्ष डॉ. ज्योति जायसवाल के मुताबिक, बच्चेदानी के बाहर पेट में भ्रूण का विकास होकर स्टोन बेबी में बदल जाने की स्थिति बहुत ही दुर्लभ है। इस प्रकार के केस मेडिकल जर्नल में बहुत ही कम देखने को मिलता है। गरियाबंद में महिला की 15 दिन पहले नॉर्मल डिलीवरी हुई थी, जिसमें महिला ने लगभग साढ़े सात महीने के एक अत्यंत कम वजनी एवं अपरिपक्व जीवित शिशु को जन्म दिया था। शिशु उपचार उपरांत भी नहीं ठीक हो पाया और उसकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार महिला के पेट में दो बच्चे थे। एक जो बच्चेदानी (यूट्रस) के अंदर सामान्य शिशुओं की तरह पल रहा था और जीवित जन्म लिया। जबकि दूसरा बच्चेदानी के बाहर और पेट (आंत व आमाशय के आसपास) के अंदर स्टोन (मृत) में तब्दील हो चुका था I

डॉ. ज्योति के मुताबिक, बतौर डॉक्टर मैंने मेडिकल कॉलेज रायपुर में यह तीसरा केस देखा है। 22 साल पहले एक केस मिला था। उसके बाद कुछ साल पूर्व एक और केस यहां आया था। संभवतः यह तीसरा केस है। अपने आप में बेहद दुर्लभ एवं जटिल किस्म के इस केस को मेडिकल जर्नल में प्रकाशित करने के लिए मरीज के परिजनों से स्वीकृति ले ली गई है। भविष्य में चिकित्सा छात्रों के अध्ययन के लिए भी परिजनों से स्वीकृति लेकर स्टोन बेबी को सुरक्षित रख लिया गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *