छत्तीसगढ़ सरकार ने केंद्र सरकार से अपील की है कि हसदेव अरण्य स्थित परसा कोयला ब्लॉक (Parsa coal block) को दी गई वन मंजूरी रद की जाए। आखिर क्या है इसकी वजह जानने के लिए पढ़ें यह रिपोर्ट…
छत्तीसगढ़ सरकार (Chhattisgarh government) ने केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय को पत्र लिखकर हसदेव अरण्य स्थित परसा कोयला ब्लॉक को दी गई वन मंजूरी (forest approval) को रद करने की मांग की है। परसा कोयला ब्लॉक को लेकर लंबे समय से विरोध हो रहा है। छत्तीसगढ़ सरकार ने इसके पक्ष में कानून व्यवस्था की समस्या पैदा होने के साथ ही स्थानीय लोगों के लाभ का हवाला दिया है। राज्य सरकार के अधिकारियों ने मंगलवार को यह जानकारी दी।
बता दें कि परसा कोयला ब्लॉक को राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम लिमिटेड (आरआरवीयूएनएल) को आवंटित किया गया है। वहीं कोयला खदान Parsa coal block के डेवलपर एवं आपरेटर का काम अडाणी एंटरप्राइजेज को दिया गया है। राज्य सरकार का कहना है कि खनन के विरोध में हसदेव क्षेत्र में कानून-व्यवस्था की स्थिति बिगड़ सकती है इसलिए वह स्थानीय लोगों के लाभ को देखते हुए वन मंजूरी को रद्द करने की गुजारिश करती है।
छत्तीसगढ़ सरकार (Chhattisgarh government) के वन एवं जलवायु परिवर्तन विभाग के अवर सचिव केपी राजपूत की ओर से लिखे गए पत्र में कहा गया है कि लोगों के विरोध के चलते पैदा हुई कानून व्यवस्था की स्थिति और व्यापक लोकहित को देखते हुए परसा कोयला ब्लॉक परियोजना के लिए जारी वन भू उपयोग परिवर्तन की स्वीकृति को निरस्त कर दिया जाए। परसा कोयला ब्लॉक परियोजना 841.548 हेक्टेयर में फैली है। मालूम हो कि राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने इस साल मार्च में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल से मुलाकात करके परियोजना की राह में आ रही अड़चनों को दूर करने की गुजारिश की थी।
मालूम हो कि हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले स्थानीय लोग बीते कई महीनों से इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं। परियोजना के लिए वनों की कटाई शुरू हुई जिसको लेकर आदिवासियों के विरोध के बाद इसको रोक दिया गया। पर्यावरण संरक्षण को लेकर काम कर रहे कार्यकर्ताओं का दावा है कि परसा खनन परियोजना के कारण लगभग 700 लोग विस्थापित होंगे और लगभग 840 हेक्टेयर के क्षेत्र में घने जंगल नष्ट हो जाएंगे।