झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर चुनाव आयोग ने लाभ के पद को लेकर कार्रवाई की है। उनसे पहले कई सांसदों और विधायकों पर भी आयोग कार्रवाई कर चुका है। किसी ने दोबारा चुनाव लड़ा तो कोई कोर्ट पहुंचा।

देश में लाभ का पद से जुड़े मामले में पहले भी कई जनप्रतिनिधियों पर निर्वाचन आयोग के जरिए कार्रवाई की जा चुकी है। कई सांसद-विधायकों ने इस्तीफा देकर दोबारा चुनाव में जाना बेहतर समझा। तो कई ने निर्वाचन आयोग के फैसले और मंतव्य के खिलाफ ऊपरी अदालत का दरवाजा खटखटाया था। इनमें सोनिया गांधी, जया बच्चन, झामुमो सुप्रीमो शिबू सोरेन आदि शामिल है।

इतना ही नहीं कई निर्वाचित प्रतिनिधियों की सदस्यता आय से अधिक संपत्ति के मामले में भी जा चुकी है। वहीं कई को आपराधिक मामले में अपराध सिद्ध होने पर अपना पद छोड़ना पड़ा था। हालांकि इसके बाद राजनीतिक उठापठक भी बड़े पैमाने पर शुरू हो गई थी।

सोनिया गांधी वर्ष 2004 में कांग्रेस की अगुवाई में बनी यूपीए-1 की सरकार के दौरान राष्ट्रीय सलाहकार परिषद का चेयरपर्सन नियुक्त किया गया था और इसे लाभ का पद माना गया था। ये एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बन गया था। सोनिया गांधी ने संसद से इस्तीफा देकर दोबारा चुनाव में जाना उचित समझा।

शिबू सोरेन साल 2001 में हाईकोर्ट ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन की संसद सदस्यता रद्द कर दी थी। दरअसल, उस वक्त वे झारखंड क्षेत्र स्वायत्त परिषद के अध्यक्ष थे।

जया बच्चन वर्ष 2006 में आरोप लगा था कि राज्यसभा सांसद होते हुए यूपी फिल्म विकास निगम की अध्यक्ष के पद पर हैं जो जनप्रतिनिधित्व कानून का उल्लंघन भी है। ऐसे में चुनाव आयोग ने भी इसे ‘लाभ का पद’ माना और उन्हें अयोग्य घोषित किया गया। जया बच्चन ने आयोग के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। लेकिन सुप्रीम कोर्ट से उन्हें राहत नहीं मिली।

आप विधायक 2018 में चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी को बड़ा झटका देते हुए पार्टी के 20 विधायकों को लाभ के पद के मामले में अयोग्य घोषित करार दिया था।

रशीद मसूद भ्रष्टाचार के मामले में सदस्यता रद्द होने की सबसे पहली कार्रवाई कांग्रेस सांसद रशीद मसूद के खिलाफ हुई थी। सहारनपुर के रशीद मसूद पर आरोप था कि विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार में 1990 से 1991 तक स्वास्थ्य मंत्री रहते हुए उन्होंने देश भर के मेडिकल कालेजों में केन्द्रीय पूल से त्रिपुरा को आवंटित एमबीबीएस सीटों पर अयोग्य उम्मीदवारों को धोखाधड़ी कर नामित किया था। उनकी राज्यसभा की सदस्यता छिन गई थी।

खब्बू तिवारी भाजपा विधायक खब्बू तिवारी फर्जी मार्कशीट मामले में दोषी पाए गए थे और 18 अक्तूबर 2021 को एमपी-एमएलए कोर्ट ने उन्हें पांच साल की सजा सुनाई थी। इसके बाद उनकी सदस्यता रद्द हो गई थी।

कुलदीप सेंगर दिल्ली की तीस हजारी कोर्ट ने उन्नाव दुष्कर्म केस में भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर को दोषी करार देते हुए उम्रकैद की सजा सुनाई थी, जिसके बाद उन्हें पद छोड़ना पड़ा था।

अशोक चंदेल हमीरपुर से भाजपा विधायक अशोक चंदेल को हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा मिलने के बाद उनकी विधानसभा की सदस्यता रद्द कर दी गई थी। विधानसभा में अशोक चंदेल की जगह 19 अप्रैल से खाली घोषित कर दी गई थी।

जीतेंद्र तोमर दिल्ली में आम आदमी पार्टी के विधायक जीतेंद्र सिंह तोमर भी साल 2015 में फर्जी डिग्री के मामले में गिरफ्तार किए गए थे। हाईकोर्ट ने उन्हें इस मामले में दोषी बताते हुए विधानसभा सदस्यता रद्द कर दी थी। ऐसे कई मामले झारखंड में भी पहले सामने आ चुके हैं।

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