यूपी के अलीगढ़ जिले में भी लंपी स्किन डिजीज (एलएसडी) के केस मिलने शुरू हो गए हैं। अलीगढ़ में अब तक करीब 267 गाय-भैंस लंपी रोग से ग्रसित मिले हैं। खैर ब्लॉक के 12 गांव के गोवंश लंपी के चपेट में हैं।

यूपी के अलीगढ़ जिले में भी लंपी स्किन डिजीज (एलएसडी) के केस मिलने शुरू हो गए हैं। अलीगढ़ में अबतक करीब 267 गाय-भैंस लंपी रोग से ग्रसित मिले हैं। पशुपालन विभाग के डायरेक्टर डॉ. पीके सिंह और मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. बीपी सिंह ने गांव में जाकर पशुओं का हाल जाना। वहीं संक्रमित पशुओं का इलाज किया जा रहा है।

लंपी वायरस राजस्थान, गुजरात और महाराष्ट्र समेत कई राज्यों के जानवरों को बीमार बना रहा है। राजस्थान के रास्ते अलीगढ़ पहुंची इस बीमारी से पशु और पशुपालकों का जीना बेहाल कर रखा है। खैर ब्लॉक के 12 गांवों में लंपी रोग से ग्रसित पशु मिले हैं। यह बीमारी सिर्फ गोवंशीय पशुओं में ही फैल रहा है।

ब्लॉक के खेड़ा दयालनगर, मोहसिनपुर, नारायणपुर, सिद्धगढ़ी, गोमत, सोफा, सोफा नगरिया, निबसानी, साथना, श्यामराज, बहरौला और कुरावन समेत अन्य गावों में भी लंपी के प्रकोप देखने को मिल रहा है। इसके अलावा चंडौस ब्लॉक और पिसावा नगर पंचायत के गई मोहल्लों में पशु बीमारी की जद में मिले है। सीवीओ ने बताया कि पशुपालन विभाग के चिकित्सकीय टीम ग्रामीण इलाकों में पहुंचकर पशुओं का उपचार कर रही है।

बीमारी के लक्षण

मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ. बीपी सिंह ने बताया कि यह बीमारी गायों की सभी प्रजातियों में होती है। दूध देने वाली गायों की इम्यूनिटी थोड़ी कम होती है, इसलिए लंपी वायरस सबसे पहले दूध देने वाली गायों को अपना शिकार बनाती है। इसी प्रकार बछड़ों में अधिक नुकसान करती है। जर्सी नस्ल कर गाय में ये बीमारी जानलेवा होती है। भारतीय प्रजाति की गायों में जिन्हें जेबू कैटल की प्रजाति माना जाता है इतनी जानलेवा नहीं होती। पहली बार जब यह बीमारी का प्रकोप होता है तो वह सबसे गंभीर होता है।

कैसे नहीं फैलता है रोग 

1- यह बीमारी हवा से नहीं फैलती।
2- यह बीमारी छींकने से नहीं फैलती।
3- यह बीमारी थूक और लार से नहीं फैलती है।
4- यह बीमारी साथ में चारा खाने से नहीं फैलती।
5- यह बीमारी साथ में पानी पीने से नहीं फैलती।
6- यह बीमारी साथ में रहने से नहीं फैलती।
7- यह बीमारी छूत की बीमारी नहीं है।

कैसे फैलता है रोग

पशु चिकित्साधिकारी डॉ. रविंद्र ने बताया कि यह बीमारी गायों का खून चूसने वाले कीड़ों और मक्खी मच्छरों से फैलती है। एक गाय के खून से दूसरे गाय के खून में फैलती है। इसलिए इंजेक्शन की सुई को दूसरी गाय के उपयोग में नहीं लाएं। यह वायरल डिजीज गायों का खून चूसने वाले जितने भी मक्खी मच्छर कीड़े हो सकते हैं। उन सब के माध्यम से फैलती है।

रोग के बारे में सही जानकारी आवश्यक

सीवीओ डॉ. बीपी सिंह ने बताया कि यह बीमारी गायों का खून चूसने वाले मक्खी मच्छर के काटने से होती है। जब यह मच्छर काटते हैं तो वायरस गाय के खून में चला जाता है। 2 से 4 सप्ताह तक का समय यह वायरस अपनी संख्या बढ़ाने में लगाता है। जिसे इनक्यूबेशन पीरियड बोलते हैं। मच्छर के काटने के 15 से 30 दिन में बीमारी शुरू हो सकती है।

इस समय में गाय में कोई भी लक्षण दिखाई नहीं देता। बीमारी शुरू होती है तो सबसे पहले बुखार आता है। गाय की खाल पर अनेक दाने एक साथ दिखाई देते हैं। मुंह में लार टपकने लगती है, आंखों से और नाक से पानी आने लगता है, चमड़ी की सूजन नीचे की ओर लटकने लगती है और सारे शरीर में लिंफ नोड्स में सूजन आ जाती है।

बचाव और उपचार 

बीमारी से ग्रसित पशुओं के उपचार को पशुपालक पशु चिकित्सक से संपर्क करें। पशुओं को शीप पॉक्स वैक्सीन से या गोट पोक्स वैक्सीन से टीका लगवाएं। यह वैक्सीनेशन गायों में बहुत उपयोगी है, क्योंकि यह एक ही वायरस से होने वाली बीमारियां हैं। इसलिए इसमें क्रॉस प्रोटेक्शन मिलता है और गायों को भीषण नुकसान से बचाया जा सकता है। अपने आसपास वेटरनरी चिकित्सक से अवश्य संपर्क करें।

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