पैगंबर मोहम्मद पर नूपुर शर्मा की टिप्पणी से उपजे विवावद में सबसे अहम बात यह है कि इस मसले पर पहला रिएक्शन कतर का था, जिसके सख्त आपत्ति जताते हुए भारत सरकार से ही माफी की मांग कर दी थी।
पैगंबर मोहम्मद पर नूपुर शर्मा की टिप्पणी के बाद तेल उत्पादक 6 बड़े खाड़ी देशों और उनके पड़ोसियों के बयान बीते कुछ दिनों में चर्चा में रहे हैं। बहरीन, ईरान, इराक, यूएई, सऊदी अरब, मलयेशिया समेत कई देशों ने इस मसले पर भारत सरकार से आपत्ति जाहिर की है। लेकिन सबसे अहम बात यह है कि इस मसले पर पहला रिएक्शन कतर का था, जिसके सख्त आपत्ति जताते हुए भारत सरकार से ही माफी की मांग कर दी थी। ऐसे में यह सवाल भी उठता है कि सऊदी अरब जैसे बड़े देशों से भी ज्यादा तीखा और फौरी रिएक्शन कतर ने क्यों दिया। दरअसल इसकी इनसाइड स्टोरी भारत के सऊदी अरब और यूएई के साथ तेजी से मजबूत होते रिश्तों में है।
OIC का लीडर बनना चाहता है कतर
एक तरफ सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों के रिश्ते भारत के साथ तेजी से मजबूत हो रहे हैं तो वहीं कतर इस्लाम सहयोग संगठन का लीडर बनना चाहता है। बड़े पैमाने पर तेल उत्पादन के चलते कतर की आर्थिक स्थिति भी बेहतर है। ऐसे में अब उसकी महत्वाकांक्षा इस्लामिक दुनिया के नेता के तौर पर उभरने की है। यही वजह है कि उसने इस मसले पर प्रतिक्रिया देने में सबसे ज्यादा तेजी दिखाई। पीएम नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से भारत के सऊदी अरब और यूएई से रिश्ते काफी बेहतर हुए हैं। आज यूएई एकमात्र ऐसा इस्लामिक देश है, जिसने भारत के साथ फ्री ट्रेड अग्रीमेंट किया है।
कई अरब देशों के साथ मजबूत हुए हैं भारत के रिश्ते
दशकों पुरानी रुढ़ियों को तोड़ते हुए सऊदी अरब और यूएई ने भारत में लगातार निवेश बढ़ाया है। डिफेंस पार्टनरशिप और प्रोडक्शन में भी सहयोग बढ़ा है। इसके अलावा पश्चिमी हिंद महासागर क्षेत्र में भी तीनों देशों के बीच सहयोग बढ़ रहा है। इसके अलावा ओमान से भी भारत के साथ लगातार मजबूत बने हुए हैं। फरवरी के बाद से ओमान के विदेश और व्यापार मंत्री तो भारत आए ही हैं, उनके अलावा रक्षा सचिव और नेवी चीफ ने भी दौरा किया है। पश्चिमी हिंद महासागर में भारत का बड़ा सहयोगी ओमान ही है। इसके अलावा आतंकवाद के खिलाफ भी भारत के समर्थन में सऊदी अरब, यूएई और ओमान बोलते रहे हैं। भारत के बहरीन और जॉर्डन के साथ भी अच्छे रिश्ते रहे हैं।
मिस्र और मोरक्को ने भी भारत के खिलाफ कुछ नहीं बोला
दिलचस्प बात यह है कि इस्लामिक सहयोग संगठन में शामिल मिस्र और मोरक्को ने भी इस मसले पर कुछ नहीं कहा है। ऐसे में इन देशों से खुद को अलग दिखाने और इस्लामिक दुनिया के खैरख्वाह के तौर पर खुद को पेश करने की कोशिश में कतर ने यह आक्रामकता दिखाई है। सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों की तुलना में भारत के कतर और कुवैत से बहुत प्रगाढ़ संबंध नहीं हैं। कतर खुद को एक बड़े प्लेयर के तौर पर पेश करना चाहता है और इसी मकसद से उसने इस साल के अंत में अपने यहां फीफा वर्ल्ड कप का आयोजन भी रखा है। अमेरिका का करीबी होने के साथ ही कतर इस्लामिक दुनिया में सऊदी अरब का प्रतिद्वंद्वी भी है।
कुवैत के अमीर ने 2006 में आखिरी बार किया था भारत दौरा
भारत में कतर का निवेश इन देशों के मुकाबले काफी कम है। इसके अलावा कुवैत से मिलने वाला एफडीआई भी ज्यादा नहीं है। दोनों देशों के रिश्तों की भी बात करें तो कुवैत के अमीर आखिरी बार 2006 में भारत की यात्रा पर आए थे। इससे समझा जा सकता है कि द्विपक्षीय मामलों में दोनों देशों के बीच कितनी दूरी है। हालांकि भारतीय मूल के बहुत से लोग कतर और कुवैत में काम करते हैं। भारतीय मार्केट से कतर एयरवेज की बड़ी कमाई है। लेकिन सऊदी अरब और यूएई जैसे देशों के मुकाबले ये संबंध बहुत ज्यादा नहीं हैं। शायद यही वजह है कि कतर ने भारत की आलोचना का रिस्क लिया और इस्लामिक दुनिया में खुद को लीडर के तौर पर पेश करने की कोशिश की।