कहानी – रामायण में रावण ने घोर तप किया और ब्रह्माजी को प्रसन्न कर लिया। ब्रह्माजी रावण को वरदान देने के लिए प्रकट हुए। रावण ने वरदान मांगा, ‘मुझे वर दीजिए कि किसी के हाथों मेरी मृत्यु न हो।’

ये बात सुनकर ब्रह्माजी चिंतित हो गए। एक तो रावण दुष्ट है और ऊपर से ऐसा वरदान मांग रहा है। ब्रह्माजी ने रावण को समझाया, ‘जिसने जन्म लिया है, उसकी मृत्यु अवश्य होगी। यही विधान है।’

रावण अड़ गया और बोला, ‘आपका नियम मैं नहीं जानता। मुझे तो यही आशीर्वाद देना पड़ेगा।’

ब्रह्माजी सोचने लगे कि अब क्या किया जाए। उन्होंने देवी सरस्वती से प्रार्थना की कि कुछ तो मदद करिए। इसकी बुद्धि फेरिए।

कुछ देर बाद ही रावण ने कहा, ‘ठीक है, मुझे वर दीजिए कि मनुष्य और बंदरों को छोड़कर मुझे कोई मार न सके।’

ब्रह्माजी ने तुरंत तथास्तु कह दिया। रावण ने सोचा था कि मनुष्य और बंदर तो मेरा भोजन हैं, ये क्या मुझे मारेंगे। उसने कल्पना भी नहीं की थी कि कभी कोई इंसान बंदरों के साथ उसकी मौत का कारण बन जाएगा।

सीख – इस कहानी की सीख यह है कि जब भी कोई बड़ी सफलता मिले तो हमें अपनी वाणी पर नियंत्रण रखना चाहिए। बड़े बोल न बोलें। कभी-कभी अहंकार में ऐसी बड़ी बातें बोल दी जाती हैं जो भविष्य में हमारे लिए ही नुकसानदायक हो जाती हैं।

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