जमीयत उलेमा-ए- हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी ने कहा कि देश में नेगेटिव पॉलिटिक्स के लिए मौके की तलाश की जा रही है. उन्होंने कहा कि इससे देश की शांति व्यवस्था और भाईचारे को नुकसान होगा. जमीअत की बैठक में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा ईदगाह के संबंध में भी प्रस्ताव पारित किया गया है.

देवबंद (सहारनपुर): 

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के सहारनपुर के देवबंद में चल रहे जमीयत उलेमा-ए- हिंद (Jamiat Ulema-E-Hind) की बैठक में आज दूसरे दिन कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किए गए हैं. जमीयत ने आज प्रस्ताव पारित कर कहा है कि “समान नागरिक संहिता क़ानून” किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं किया जा सकता है. जमीयत के प्रस्ताव में लिखा गया है कि “समान नागरिक संहिता क़ानून” को लागू करना इस्लाम में हस्तक्षेप करने जैसा होगा.

जमीयत ने कहा है कि “समान नागरिक संहिता क़ानून” संविधान की मूल भावना के ख़िलाफ़ है. ये क़ानून भारत के संविधान की धारा 25 में दिए गए धार्मिक स्वतंत्रता के ख़िलाफ़ है. जमीयत के नेताओं ने प्रस्ताव पारित कर कहा है कि केंद्र में सत्तारूढ़ दल के नेता पर्सनल लॉ को ख़त्म करने की मंशा से “समान नागरिक संहिता” क़ानून लागू करने की बात कर रहे हैं.

जमीयत उलेमा-ए- हिंद के अध्यक्ष अरशद मदनी ने कहा कि देश में नेगेटिव पॉलिटिक्स के लिए मौके की तलाश की जा रही है. उन्होंने कहा कि इससे देश की शांति व्यवस्था और भाईचारे को नुकसान होगा. जमीअत की बैठक में ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा ईदगाह के संबंध में भी प्रस्ताव पारित किया गया है.

जमीअत ने अपने प्रस्ताव में कहा है, “जमीयत उलेमा-ए- हिंद प्राचीन इबादतगाहों पर बार-बार विवाद खड़ा कर देश में अमन व शांति को ख़राब करने वाली शक्तियों और उनको समर्थन देने वाले राजनीतिक दलों के रवैये से अपनी गहरी नाराज़गी व नापसंदीदगी ज़ाहिर करती है. बनारस की ज्ञानवापी मस्जिद, मथुरा की एतिहासिक ईदगाह और दीगरमस्जिदों के खिलाफ़ इस समय ऐसे अभियान जारी हैं, जिससे देश में अमन शांति और उसकी गरिमा और अखंडता को नुकसान पहुंचा है.”

जमीयत ने कहा है कि अब इन विवादों को उठा कर साम्प्रदायिक टकराव और बहुसंख्यक समुदाय के वर्चस्व की नकारात्मक राजनीति के लिए अवसर निकाले जा रहे हैं. जमीयत की ओर से कहा गया है, “हालांकि यह स्पष्ट है कि पुराने विवादों को जीवित रखने और इतिहास की कथित ज़्यादतियों और गलतियों को सुधारने के नाम पर चलाए जाने वाले आन्दोलनों से देश का कोई फ़ायदा नहीं होगा.”

जमीयत ने अदालती फैसलों पर भी प्रस्ताव पारित किए हैं और कहा है, “खेद है कि इस संबंध में बनारस और मथुरा की निचली अदालतों के आदेशों से विभाजनकारी राजनीति को मदद मिली है और ‘पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) एक्ट 1991′ की स्पष्ट अवहेलना हुई है, जिस के तहत संसद से यह तय हो चुका है कि 15 अगस्त 1947 को जिस इबादतगाह की जो हैसियत थी वह उसी तरह बरक़रार रहेगी. निचली अदालतों ने बाबरी मस्जिद के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले की भी अनदेखी की है जिस में अन्य इबादतगाहों की स्थिति की सुरक्षा के लिए इस अधिनियम का विशेष रूप से उल्लेख किया गया है.”

प्रस्ताव में कहा गया है, “जमीअत उलेमा-ए-हिंद सत्ता में बैठे लोगों को बता देना चाहती है कि इतिहास के मतभेदों को बार-बार जीवित करना देश में शांति और सद्भाव के लिए हरगिज़ उचित नहीं है. खुद सुप्रीम कोर्ट ने बाबरी मस्जिद फैसले में ‘पूजा स्थल क़ानून 1991 एक्ट 42′ को संविधान के मूल ढ़ांचे की असली आत्मा बताया है. इसमें यह संदेश मौजूद है कि सरकार, राजनीतिक दल और किसी धार्मिक वर्ग को इस तरह के मामलों में अतीत के गड़े मुर्दों को उखाडने से बचना चाहिए, तभी संविधान का अनुपालन करने की शपथों और वचनों का पालन होगा, नहीं तो यह संविधान के साथ बहुत बड़ा विश्वासघात होगा.”

जमीयत ने कहा है कि समान नागरिक संहिता लागू करके मूल संवैधानिक अधिकारों से वंचित करने की साजिश की जा रही है. यह चिंता की बात है. जमीयत ने कहा, “मुस्लिम पर्सनल लॉ में शामिल मामले जैसे कि शादी, तलाक़, ख़ुला (बीवी की मांग पर तलाक़), विरासत आदि के नियम क़ानून किसी समाज, समूह या व्यक्ति के बनाए हुए नहीं हैं. न ही ये रीति-रिवाजों या संस्कृति के मामले हैं, बल्कि नमाज़, रोज़ा, हज आदि की तरह ये हमारे मज़हबी आदेशों का हिस्सा हैं, जो पवित्र कुरआन और हदीसों से लिए गए हैं. इसलिए उनमें किसी तरह का कोई बदलाव या किसी को उनका पालन करने से रोकना इस्लाम में स्पष्ट हस्तक्षेप और भारत के संविधान की धारा 25 में दी गई गारंटी के खि़लाफ़ है.”

प्रस्ताव में कहा गया है कि इसके बावजूद अनेक राज्यों में सत्तारूढ़ लोग पर्सनल लॉ को ख़त्म करने की मंशा से ‘समान नागरिक संहिता क़ानून’ लागू करने की बात कर रहे हैं और संविधान व पिछली सरकारों के आश्वासनों और वादों को दरकिनार कर के देश के संविधान की सच्ची भावना की अनदेखी करना चाहते हैं.

प्रस्ताव में कहा गया है,  “जमीयत उलेमा-ए-हिंद का यह सम्मेलन स्पष्ट कर देना चाहता है कि कोई मुसलमान इस्लामी क़ायदे क़ानून में किसी भी दख़ल अन्दाज़ी को स्वीकार नहीं करता. इसीलिए जब भारत का संविधान बना तो उसमें मौलिक अधिकारों के तहत यह बुनियादी हक़ दिया गया है कि देश के हर नागरिक को धर्म के मामले में पूरी आज़ादी होगी. उसे अपनी पसंद का धर्म अपनाने, उसका पालन व प्रचार करने की आज़ादी का बुनियादी हक़ होगा. इसलिए हम सरकार से मांग करते हैं कि भारत के संविधान की इस मूल विशेषता और इस गारंटी को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम पर्सनल लॉ की सुरक्षा के संबंध में एक स्पष्ट निर्देश जारी किया जाए.”

जमीयत नेताओं ने कहा कि यदि कोई सरकार समान नागरिक संहिता को लागू करने की ग़लती करती है, तो मुस्लिम और अन्य अनेक वर्ग इस घोर अन्याय को हरगिज़ स्वीकार नहीं करेंगे और इसके खिलाफ़ संवैधानिक सीमाओं के अंदर रह कर हर संभव उपाय करने के लिए मजबूर होंगे.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *