वहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह भी ट्वीट कर सावरकर को श्रद्धांजलि अर्पित की है। अमित शाह ने कहा कि वीर सावरकर जी को एक ही जीवन में मिली दो उम्रकैद व काल कोठरी की अमानवीय यातनाएं भी मां भारती को परम वैभव पर ले जाने के उनके संकल्प को डिगा नहीं पाई। स्वतंत्रता आंदोलन में उनके अद्वितीय योगदान और समाज से अस्पृश्यता को दूर करने के उनके प्रयासों को कभी भुलाया नहीं जा सकता। जबकि बीजेपी के ट्विटर हैंडल से भी ट्वीट कर एक वीडियो शेयर की। इस ट्वीट में वीडियो भी शेयर किया गया है। वीडियो में पीएम मोदी सावरकर की तस्वीर के सामने हाथ जोड़े देखे जा सकते हैं।
शिवसेना बाला साहब और सावरकर दोनों को भूली
महाराष्ट्र भाजपा की प्रदेश सचिव और प्रवक्ता श्वेता शालिनी अमर उजाला से चर्चा में कहती है कि आज की शिवसेना हिंदुत्व, बालासाहेब ठाकरे और वीर सावरकर की विचारधारा को पूरी तरह से भूला चुकी है। आज महाराष्ट्र में जो सरकार सत्ता में है वह सम्मानीय बालासाहेब ठाकरे की शिवसेना नहीं है बल्कि सोनिया सेना है। इसलिए इनको मां भारती के कर्मठ सपूत सावरकर और उनकी विचारधारा को याद रखना बिल्कुल भी शोभा नहीं देता हैं। आज चाहे राजीव गांधी की पुण्यतिथि का कार्यक्रम हो या अन्य कोई कांग्रेस समर्थित व्यक्ति के कार्यक्रम इसमें प्रदेश के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे शामिल होते हैं, लेकिन आज उन्होंने सावरकर की जयंती पर न तो कोई माल्यार्पण किया ना ही कोई कार्यक्रम किया। सत्ता के मोह में सीएम को न तो हिंदुत्व याद है,ना ही ठाकरे याद है, ना ही सावरकर याद है।
अमर उजाला से चर्चा में वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई कहते है कि वीर सावरकर की पुण्यतिथि के मौके पर एक बार फिर शिवसेना के हिंदुत्व की परीक्षा होगी। शिवसेना सरकार में रहते हुए कांग्रेस की नाराजगी मोल नहीं लेना चाहेगी, इसलिए सावरकर को लेकर शिवसेना का रुख स्पष्ट नहीं है। कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी में कोई वैचारिक समानता नहीं है। लेकिन तीनों पार्टियों के बीच जब महाविकास अघाड़ी गठबंधन बना तब यह तय किया गया था कि सभी दल सरकार को चलाने में परस्पर सहयोग करेंगे। लेकिन राजनीतिक मुद्दों पर दलों का दृष्टिकोण अलग अलग हो सकता है। इसलिए इस गठबंधन में विचारधाराओं से जुड़े मुद्दों को शामिल नहीं किया गया है। आज अगर महाराष्ट्र सरकार वीर सावरकर को लेकर कोई सरकारी कार्यक्रम का आयोजन करती है तो ऐसे में तीनों दलों के बीच टकराव की स्थिति बन सकती है। इसलिए शिवसेना भी इस तरह के आयोजन से बचती हुई दिखाई देती है और पार्टी स्तर पर कोई आयोजन कर लेती है।
गौरतलब है कि शिवसेना, कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के बीच वीर सावरकर के मुद्दे को लेकर मतभेद रहे हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी कई बार सावरकर और संघ पर हमले बोलते रहे है। जबकि शिवसेना हमेशा वीर सावरकर को स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर पेश करती रही है और उनके मुद्दे पर कभी भी समझौता नहीं करने की बात कहती रही है। ऐसी स्थिति में अगर शिवसेना सावरकर को लेकर कुछ सराहनीय कदम उठाती है तो कांग्रेस के साथ फिर टकराव की स्थिति बन सकती है। इस कारण शिवसेना महाराष्ट्र में उनके नाम पर कोई बड़ा कार्यक्रम करने से बचते हुए दिखाई देती है।