तेलंगाना में जहां भाजपा सत्ता में आने का ख्वाब देख रही है, वहीं पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में उसका झंडा उठाने वाला कोई नहीं है। भाजपा आंध्र प्रदेश में अब तक किसी मजबूत चेहरे को अपने साथ नहीं जोड़ सकी है जो उसके चुनावी अभियान को आगे बढ़ा सके…

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने भाजपा को एतिहासिक सफलताएं दिलाई हैं, लेकिन देश का दक्षिणी हिस्सा अभी भी उनकी प्रभाव क्षेत्र से बाहर ही रहा है। कर्नाटक को छोड़कर किसी भी राज्य में उसकी अब तक प्रभावी उपस्थिति दर्ज नहीं की जा सकी है। भाजपा का धर्म के आधार पर मतों के ध्रुवीकरण का आजमाया कार्ड अब तक दक्षिणी हिस्से में कारगर साबित नहीं हुआ है। लेकिन भाजपा की तैयारियों को देखकर माना जा रहा है कि मोदी-शाह अब इस अंतिम किले को भी जीतकर अपने राजनीतिक अभियान को ‘पूर्णता’ देना चाहते हैं। उसके स्थानीय नेता पार्टी के अभियान को आगे बढ़ाने में जुट गए हैं।

दक्षिण भारत अभियान में भाजपा को सबसे ज्यादा उम्मीद तेलंगाना से है, जहां पिछले लोकसभा चुनाव में ही पार्टी ने अपनी मजबूती का एहसास करा दिया था। माना जा रहा है कि पार्टी अगले विधानसभा चुनाव में यहां बड़ी सफलता हासिल कर सकती है। भाजपा की उम्मीद सत्तारूढ़ दल के खिलाफ लोगों में उपजी नाराजगी से है। केसीआर चंद्रशेखर राव ने पिछले विधानसभा चुनाव में लोगों में भारी उम्मीदें पैदा की थीं। हर भूमिहीन किसान परिवार को जमीन देने के साथ नकदी सहायता देने की घोषणा ने राज्य के गरीब वर्ग में उनके प्रति भारी आकर्षण पैदा किया था। लेकिन अब तक इस दिशा में कोई काम नहीं हो सका है। बेरोजगार युवाओं को नौकरी और भत्ते का वायदा अब केसीआर के गले की फांस बन चुका है।

भ्रष्टाचार को लेकर लोग नाराज

लोगों की सबसे ज्यादा नाराजगी भ्रष्टाचार को लेकर है। आरोप है कि मुख्यमंत्री और उनके रिश्तेदारों के नाम राज्य की राजधानी सहित प्रमुख जगहों पर जमीनें अलाट कर दी गई हैं। प्रशासन के ज्यादातर ठेकों पर मुख्यमंत्री के करीबियों का कब्जा हो गया है। सीएम के करीबियों पर लग रहे भ्र्ष्टाचार के आरोपों से राज्य में सत्तारूढ़ दल के प्रति लोगों की नाराजगी बढ़ी है। भाजपा इस सत्ताविरोधी लहर को भुनाने की कोशिश कर रही है।

भाजपा के स्थानीय नेता इस नाराजगी में सांप्रदायिकता का तड़का लगाकर पार्टी का रास्ता आसान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। भाजपा नेता बंडी संजय कुमार ओवैसी पर हमले के बहाने अल्पसंख्यकों पर करारा हमला कर रहे हैं। वे सत्ता में आने पर हर मस्जिद की खुदाई करने, अल्पसंख्यकों को दिया जा रहा आरक्षण समाप्त करने की बात कहकर लोगों की भावनाएं भड़काने की कोशिश कर रहे हैं। चुनाव में असदुद्दीन ओवैसी का साथ लेने के कारण केसीआर को एक वर्ग विशेष के लिए काम करने वाली सरकार के रूप में स्थापित करने की कोशिश हो रही है।

हर वर्ग के लिए करेंगे काम

तेलंगाना के भाजपा अध्यक्ष बंडी संजय कुमार ने अमर उजाला से कहा कि केसीआर सरकार हर मोर्चे पर असफल साबित हुई है। वह जनता से किया कोई वादा निभाने में असफल रही है। जबकि इसी दौरान राज्य में बेरोजगारी बढ़ी है और किसानों को अपनी जिंदगी चलाना भी मुश्किल हो गया है। उन्होंने कहा कि भाजपा राज्य में अपने काम और केंद्र की योजनाओं के कारण लोगों के बीच लोकप्रिय हो रही है और इससे हम इस विधानसभा चुनाव में सरकार बनाने में सफल रहेंगे।

लेकिन यहां है मुश्किल

तेलंगाना प्रेस एसोसिएशन के अध्यक्ष बालास्वामी ने कहा कि सत्तारूढ़ दल पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। भाजपा को इसका लाभ मिल सकता है, लेकिन राज्य इकाई में भयंकर मतभेद है। प्रदेश अध्यक्ष बंडी संजय कुमार खेमा उन्हें अगला सीएम प्रोजेक्ट कराने को लेकर मुहिम चला रहा है, जबकि एक सांसद और संगठन के दो अन्य नेता इसी कोशिश में जुटे हुए हैं। माना जाता है कि अमित शाह ने अपने हाल के प्रदेश दौरे के दौरान इस मुश्किल का हल निकालने की कोशिश की थी।

सभी नेताओं को एकजुट होकर काम करने के लिए कहा गया है। लेकिन नेतृत्व की अस्पष्टता के कारण अभियान आगे नहीं बढ़ रहा है। प्रदेश अध्यक्ष बंडी संजय कुमार को भी कार्यकर्ताओं का साथ नहीं मिल रहा है। इस आंतरिक कलह के कारण केंद्र की कोशिशों को भी राज्य में झटका लग सकता है। राज्य में लगातार मजबूत होती कांग्रेस भी उसकी राह में मुश्किलें खड़ी कर सकती है।

आंध्र प्रदेश में नेता की तलाश

तेलंगाना में जहां भाजपा सत्ता में आने का ख्वाब देख रही है, वहीं पड़ोसी राज्य आंध्र प्रदेश में उसका झंडा उठाने वाला कोई नहीं है। भाजपा आंध्र प्रदेश में अब तक किसी मजबूत चेहरे को अपने साथ नहीं जोड़ सकी है जो उसके चुनावी अभियान को आगे बढ़ा सके। केंद्र की राजनीति में प्रमुख भूमिका निभा चुके एक पूर्व भाजपा नेता पर आरोप लगते हैं कि चंद्रबाबू नायडू से सांठगांठ होने के कारण उन्होंने राज्य में भाजपा को आगे नहीं बढ़ने दिया। वर्तमान जगनमोहन सरकार ने जिस तरह सभी वर्गों को सत्ता में भागीदारी सुनिश्चित कर सबका विश्वास हासिल किया है, भाजपा का सांप्रदायिक कार्ड भी यहां बेअसर साबित हुआ है।

आंध्र प्रदेश के भाजपा अध्यक्ष सोमू वीरराजु ने अमर उजाला से कहा कि वे सत्ता हासिल करने की दौड़ से कुछ दूर अवश्य हैं, लेकिन राज्य में संगठन में लगातार विस्तार हो रहा है। पहली बार राज्य के मंडल स्तर तक प्रभारी नियुक्त किये जा चुके हैं। भाजपा की यात्राएं निकालकर लोगों को पार्टी से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। लेकिन जानकारों का मानना है कि दक्षिण भारत की राजनीति में पैसे का जिस स्तर पर खेल होता है, भाजपा अब तक उस स्तर पर उतरने से दूर रही है। इसी कमी के कारण भाजपा अब तक तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में सफल नहीं हो पाई है।

हालांकि, जानकार मानते हैं कि केंद्र की राजनीति में जगनमोहन रेड्डी के संभावित उपयोग को देखकर भी केंद्र अब तक यहां चुप्पी साधे हुए है। लेकिन मोदी-शाह यह चुप्पी कितने दिन बनाये रखना चाहेंगे, यह देखने वाली बात होगी। इस रणनीति के साथ ही राज्य का चुनावी मौसम बदल सकता है।

केरल में अभेद्य वामपंथी गढ़

संघ के एक नेता के मुताबिक देश के किसी भी राज्य से ज्यादा शाखाएं केरल राज्य में ही लगाई जाती हैं, लेकिन इसके बाद भी वामपंथी विचारधारा राज्य में प्रभावी है। इसका तोड़ निकालना अब भी चुनौती भरा काम साबित हो रहा है। राज्य में वामपंथी दल और मुस्लिम संगठनों का गठजोड़ अभी भी भाजपा को पैर नहीं जमाने दे रहा है। हालांकि, ईसाई राष्ट्रीय मंच से जुड़े भाजपा नेता टॉम वडक्कन बताते हैं कि लव जिहाद के बढ़ते मामलों और भाजपा कार्यकर्ताओं की हत्याओं के कारण सरकार की बदनामी बढ़ी है। हिंदू और ईसाई समुदाय में सरकार के प्रति नाराजगी बढ़ी है। नेताओं को उम्मीद है कि आने वाले समय में लोगों की यह नाराजगी भगवा दल को केरल में बड़ा अवसर दे सकती है।

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