क्यों उठ रहे सवाल
राजद्रोह कानून को लेकर लगातार सवाल उठ रहे हैं. हाल के बरसों में मनमाने तरीके से लोगों के लिखने, बोलने और सोशल मीडिया पर पोस्ट करने पर राजद्रोह जैसी धारा लगाई जा रही है. हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस पर चिंता जाहिर कर चुका है. लेकिन इसके बाद भी ये जारी है. जानते हैं कि आखिर क्या है राजद्रोह कानून, जो आजकल तमाम मामलों और घटनाओं के बाद खासा चर्चा में है.

क्या है राजद्रोह का क़ानून?
भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के अनुसार, जब कोई व्यक्ति बोले गए या लिखित शब्दों, संकेतों या दृश्य प्रतिनिधित्व द्वारा या किसी और तरह से घृणा या अवमानना या उत्तेजित करने का प्रयास करता है या भारत में क़ानून द्वारा स्थापित सरकार के प्रति असंतोष को भड़काने का प्रयास करता है तो वह राजद्रोह का आरोपी है.

भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के तहत राजद्रोह के अपराध की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक और याचिका दायर हुई है. ये ऐसी पांचवीं याचिका है. याचिका में कहा गया है कि इस कानून का इस्तेमाल पत्रकारों को डराने, चुप करने और दंडित करने के लिए लगातार हो रहा है. ये कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और प्रेस की आजादी में बाधक बन रहा है.

ये याचिका दो महिला पत्रकारों पेट्रीसिया मुखिम और अनुराधा भसीन द्वारा दायर की गई है. याचिका में इस प्रावधान को आईपीसी से हटाने की बात की गई है. याचिका में कहा गया है कि 1970 से 2021 तक नागरिकों के मौलिक अधिकारों के न्यायशास्त्र के विकास को देखते हुए, संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के उल्लंघन के रूप में लागू प्रावधान को रद्द किया जा सकता है.
इस संबंध में याचिका में एनसीआरबी डेटा का संदर्भ भी दिया गया है, जिसके अनुसार, 2016 से 2019 तक 160% की वृद्धि के साथ राजद्रोह के मामलों में भारी वृद्धि हुई है. हालांकि अदालतों द्वारा इसकी सजा दर बहुत कम केवल 3.3 फीसदी ही है.

याचिका में कहा गया है, “राजद्रोह के अपराध के लिए सजा का तीन स्तरीय वर्गीकरण, आजीवन कारावास से लेकर जुर्माने तक, बिना किसी विधायी मार्गदर्शन के, न्यायाधीशों को बेलगाम विवेक प्रदान करने के बराबर है, जो मनमानी के सिद्धांत से प्रभावित है और अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है.”

इसके अलावा तर्क दिया गया है कि स्वतंत्र भाषण पर प्रतिबंध के रूप में राजद्रोह संवैधानिकता आवश्यकता और आनुपातिकता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता. ये भी कहा गया कि घृणा, अप्रसन्नता, निष्ठाहीन आदि जैसे शब्द सटीक मुद्दे के निर्माण में असमर्थ हैं. ये अस्पष्टता और अतिव्याप्ति के सिद्धांत से प्रभावित हैं, जिससे संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन होता है.

 

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