कोर्ट ने कहा कि सिविल सूट में पक्ष नहीं बनाया जा सकता। क्या आप वाराणसी में पक्षकार थे। यदि नहीं हो तो आप पक्ष नहीं हो सकते। यहां लोगों की कमी नहीं है। 500 इधर से और 500 उधर से पहले ही हैं।

ज्ञानवापी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप मंगलवार को विधिवत हो गया। सुप्रीम कोर्ट शुरू में इस मामले को वापस वाराणसी ट्रायल कोर्ट में भेजने का इच्छुक था, क्योंकि मस्जिद कमेटी के वकील का कहना था कि पूजा अर्चना के लिए दायर दीवानी वाद विचारणीय नहीं है, क्योंकि धार्मिक स्थान पूजा कानून, 1991 के अनुसार 15 अगस्त 1947 के दिन जो पूजा स्थान जैसी स्थिति में था, वैसा ही रहेगा। इसमें कोई वाद दखिल नहीं किया जा सकता।

मस्जिद कमेटी के वकील का कहना था कि वाराणसी सिविल कोर्ट ने उनके ‘आदेश 7, नियम 11’ के तहत विचारणीयता का प्रश्न उठाने वाली अर्जी पर कोई फैसला नहीं लिया, लेकिन 8 अप्रैल को सर्वे का और फिर 16 मई को परिसर को सील करने का आदेश दे दिया। मुसलमान यहां अनंत काल से नमाज पढ़ रहे हैं, लेकिन उन्हें प्रतिबंधित कर दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ठीक है हम इस मामले को वापस ट्रायल कोर्ट भेज देते हैं। उससे कहेंगे कि वह आपकी ‘आदेश 7, नियम 11’ की अर्जी का निपटारा करे।

कोर्ट ने सीलिंग का आदेश उन्हें बिना सुने ही दिया था : मस्जिद कमेटी के वकील
इतना सुनते ही मस्जिद कमेटी के वकील ने कहा कि कोर्ट ने सीलिंग करने का आदेश उन्हें सुने बिना ही दिया था। यह आदेश तब दिया गया, जब सारे वकील और कोर्ट कमिश्नर ज्ञानवापी का सर्वे कर रहे थे। इसके अलावा, यह आदेश मां शृंगार गौरी की पूजा, भोग, अर्चना का अधिकार मांगने वाले याचिकाकर्ताओं के वकील हरिशंकर जैन की अर्जी पर दिया, जिसमें उन्होंने बताया कि सर्वे में शिवलिंग मिला है।

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