वर्ष 2012-13 में अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू करने के समय अरविंद केजरीवाल ने तत्कालीन शीला दीक्षित सरकार पर दिल्ली को पीने योग्य पानी भी न मुहैया करा पाने का आरोप लगाया था। उन्होंने कहा था कि यदि सरकार ईमानदारी से काम करे और यमुना के किनारों पर बड़े तालाब विकसित करे तो दिल्ली न केवल अपनी प्यास बुझा सकती है, बल्कि यह दूसरे राज्यों को भी पानी दे सकती है। आज उन्हें सत्ता में आए हुए लगभग आठ वर्ष हो चुके हैं, दिल्ली का पेयजल संकट जस का तस बना हुआ है। दिल्ली की गलियों में आज भी पानी के लिए खून बह रहा है।
दिल्ली में गर्मी की मार बढ़ते ही पानी की मांग बढ़ जाती है। गर्मियों में यह मांग 1380 एमजीडी तक चली जाती है। अपने तमाम स्रोतों का उपयोग करने के बाद भी सरकार केवल 950 एमजीडी पानी उपलब्ध करा पाती है। इस प्रकार मांग और आपूर्ति में लगभग 200 एमजीडी का अंतर बना रहता है। दिल्ली जल बोर्ड पानी की इस बढ़ी मांग को पूरा करने के लिए इस वर्ष प्रतिदिन 998 एमजीडी पानी उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा है। अगले वर्ष यह मात्रा बढ़ाकर 1180 एमजीडी कर दी जाएगी।
वजीराबाद वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में सामान्य जलस्तर 674.5 फीट रहता है। इस समय यह घटकर 672.30 फीट रह गया है। पानी की कमी से निबटने के लिए दिल्ली सरकार ने हरियाणा से ज्यादा मात्रा में पानी की मांग की है। दिल्ली का सबसे बड़ा वाटर ट्रीटमेंट प्लांट हैदरपुर में है। यहां पानी का उत्पादन क्षमता से बहुत कम हो रहा है, जबकि दिल्ली में यह 225 एमजीडी पानी की सप्लाई करता है।कितना मिल रहा पानी
हरियाणा यमुना नदी और दो कैरियर लाइन कैनाल के माध्यम से दिल्ली को प्रतिदिन 683 क्यूसेक पानी उपलब्ध कराता है, लेकिन आरोप है कि इस समय यह मात्रा केवल 566 क्यूसेक रह गई है। दिल्ली को यूपी से अपर गंगा कैनाल के माध्यम से 253 क्यूसेक पानी मिलता है और लगभग 90 एमजीडी पानी लोग बोरिंग मशीनों के माध्यम से भूमि से प्राप्त कर लेते हैं। हरियाणा से पानी में सप्लाई में कमी आने के कारण दिल्ली में पानी की सप्लाई पर असर पड़ रहा है।
सिटी ऑफ लेक्स योजना का लक्ष्य अधूरा
- दिल्ली को मिलने वाले कुल पानी की मात्रा और मांग में लगभग 200 एमजीडी पानी का अंतर रहता है। इस पानी की कमी को पूरा करने के लिए 2018 में सिटी ऑफ लेक्स योजना की शुरूआत की गई थी। इसके अंतर्गत दिल्ली के पुराने तालाबों को नया जीवन देकर उनके माध्यम से दिल्ली के जल स्तर को बढ़ाने की योजना बनाई गई थी। इस योजना में 155 जलाशयों के लिए 376 करोड़ की धनराशि स्वीकृत की गई थी। रोहिणी और तिमारपुर के तालाबों के लिए 64-64 करोड़ रूपये और भलस्वा झील के लिए अलग से 10 करोड़ रुपये स्वीकृत किए गए थे।
- गत वर्ष सरकार ने दावा किया था कि इसमें से लगभग एक तिहाई तालाबों को नया जीवन दिया जा चुका है। कई तालाबों में अच्छे कार्य हुए हैं। दिल्ली में कुछ वर्षों पूर्व लगभग एक हजार सक्रिय तालाब थे। विशेषज्ञों का मानना है कि इनमें से कम से कम 600 तालाबों को दुबारा जीवन दिया जा सकता है। हालांकि, सिटी ऑफ लेक्स योजना के तीन वर्ष बीत जाने के बाद पानी की होने वाली कमी इस बात की ओर इशारा करती है कि इस दिशा में अभी बहुत प्रयास किए जाने की आवश्यकता है।
- दिल्ली सरकार अलग-अलग स्थानों पर छोटे-छोटे वाटर ट्रीटमेंट प्लांट्स लगाकर दिल्ली को होने वाले पानी की कमी को पूरा करना चाहती है। इसके लिए यमुना में गिरने वाले नालों के जल को शोधित करने की योजना भी शामिल है। वर्तमान में लगभग 35 वाटर ट्रीटमेंट प्लांट्स में 500 एमजीडी जल का शोधन किया जा रहा है। इसे बढ़ाकर 630 एमजीडी तक ले जाने की योजना है।