उत्तरी यूरोप के जिन पांच देशों (नार्डिक) डेनमार्क, स्वीडन, फिनलैंड, नार्वे तथा आइसलैंड के राष्ट्राध्यक्षों के साथ पीएम मोदी बुधवार को बैठक करेंगे, वे भारत के लिए कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण हैं।

उत्तरी यूरोप के जिन पांच देशों (नार्डिक) डेनमार्क, स्वीडन, फिनलैंड, नार्वे तथा आइसलैंड के राष्ट्राध्यक्षों के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को बैठक करेंगे, वे भारत के लिए कई मायनों में बेहद महत्वपूर्ण हैं। सबसे बड़ी बात है कि ये पांच देश भारत के संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थाई सदस्यता के बड़े पैरोकार हैं। इन देशों का समर्थन भविष्य में भारत के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, क्योंकि जिस प्रकार भारत एक बड़ी वैश्विक आर्थिक एवं राजनीतिक महाशक्ति बन रहा है, उसके चलते भविष्य में संयुक्त राष्ट्र में बदलाव होने स्वभाविक हैं जिसमें भारत की बड़ी भूमिका हो सकती है।

विशेषज्ञों की मानें तो नार्डिक देश भारत के इस विचार से भी सहमत हैं कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद समेत समूचे संयुक्त राष्ट्र में सुधार की जरूरत है। भारत ने कई मंचों पर इस बात को उठाया भी तथा इन देशों ने अपने हिसाब से उसका समर्थन भी किया है। भारत-नार्डिक देश इस बात पर सहमत हैं कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का विस्तार होना चाहिए। स्थाई और अस्थाई सीटों की संख्या में बढ़ोत्तरी होनी चाहिए। दोनों पक्षों का मानना है कि संरा सुरक्षा परिषद में देशों का प्रतिनिधित्व ज्यादा हो तथा वह 21वीं सदी की चुनौतियों के मद्देनजर ज्यादा जवाबदेह, प्रभावी और उत्तरदायी बने।

इसके अलावा नार्डिक देशों के साथ भारत के आर्थिक संबंध भी मजबूत हैं। एक तो भारत-नार्डिक देशों के बीच व्यापार बढ़ रहा है जो सालाना 13 अरब डॉलर से भी अधिक हो चुका है। दरअसल, ये छोटे देश तो हैं लेकिन इनकी कुल अर्थव्यवस्था करीब दो खरब डॉलर तक पहुंचने वाली है। नार्डिक देशों से भारत में प्रत्यक्ष विदेश निवेश (एफडीआई) पहुंचता है। तीन अरब डॉलर से भी ज्यादा निवेश हाल के वर्षों में इन देशों से आया है। इसलिए व्यापार और निवेश दोनों नजरिये से भी ये देश भारत के लिए अहम हैं।

नार्डिक देशों के पास हरित प्रौद्यौगिकी है। फिनलैंड एवं स्वीडन ऐसे देश हैं जिनके पास दुनिया में सबसे ज्यादा हरित प्रौद्यौगिकी हैं। डेनमार्क, आइसलैंड और नार्वे भी ऐसी प्रौद्यौगिकी में पीछे नहीं हैं। जलवायु खतरों से निपटने तथा 2030 तक सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए भारत का इन देशों के साथ सहयोग महत्वपूर्ण साबित हो सकता है। इससे उसे हरित प्रौद्यौगिकी हासिल हो सकेगी। कई भारतीय कंपनियां इन देशों के साथ इस क्षेत्र में सहयोग करने लगी हैं।

नार्डिक देश इनोवेश के क्षेत्र में अग्रणी हैं। आज भारत में इनोवेशन पर जोर दिया जा रहा है। नये स्टार्टअप पर जोर दिया जा रहा है। स्वीडन की राजधानी स्टाकहोम को स्टार्टअप का हब माना जाता है। भारत का जोर अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए नए स्टार्टअप पर है। इसलिए इन नवाचाार के क्षेत्र में नार्डिक देशों के साथ सहयोग भारत के लिए लाभकारी हो सकता है।

भारत-नार्डिक देशों का पहला सम्मेलन अप्रैल 2018 में स्टाकहोम में हुआ था। 2021 में दूसरा सम्मेलन कोरोना महामारी के चलते नहीं सका जो अब हो रहा है। पहले सम्मेलन में मुख्यत चार क्षेत्रों वैश्विक सुरक्षा, इनोवेशन, आर्थिक विकास और जलवायु परिवर्तन से जुड़े क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर जोर दिया गया था। इस सम्मेलन में भी इन्हीं मुद्दों पर सहयोग को आगे बढ़ाने पर जोर होगा।

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