नई दिल्ली: भारत दौरे पर आए ब्रिटिश प्रधानमंत्री बॉरिस जॉनसन गुजरात में हुए भव्य स्वागत से काफी गदगद हैं। उनका प्लेन गुरुवार को अहमदाबाद में उतरा। एयरपोर्ट से शुरू हुआ उनके स्वागत का सिलिसला दौरे के दूसरे दिन भी जारी है। इससे जॉनसन मंत्रमुग्ध दिख रहे हैं। उन्होंने यहां तक कहा कि गुजरात में उनका ऐसा स्वागत हुआ मानो वह अमिताभ बच्चन या सचिन तेंदुलकर हों। इससे पहले, गांधीनगर में ‘वैश्विक आयुष निवेश एवं नवोन्मेष शिखर सम्मेलन’ के उद्घाटन समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) प्रमुख डॉ. टेड्रोस अदनोम गिब्रियेसस (Tedros Adhanom Ghebreyesus) की इतनी तारीफ की कि वो फूले नहीं समा रहे थे। पीएम मोदी ने उन्हें ‘तुलसी भाई’ का नाम भी दिया और वो गदगद हो उठे। बहरहाल, हमारा फोकस विदेशी मेहमानों का भारत में स्वागत या प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उनकी प्रशंसा पर नहीं बल्कि सरकार के प्रमुखों या राष्ट्राध्यक्षों के नई दिल्ली के बजाय गुजरात में बुलाए जाने पर है।

दिल्ली की जगह गुजरात बना कूटनीति का केंद्र

वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में केंद्र की नई सरकार बनने से पहले कूटनीति का केंद्र नई दिल्ली ही हुआ करती थी। भारत आने वाले राष्ट्र प्रमुख या सरकार के शीर्ष नेता सीधे नई दिल्ली आया करते थे। अगर कोई विदेशी मेहमान अन्य जगह भी जाने की इच्छा जताते तो उनकी यात्रा की व्यवस्था भारत सरकार किया करती थी। लेकिन आम तौर पर वो सीधे दिल्ली आकर प्रधानमंत्री से बातचीत और राष्ट्रपति से मुलाकात करते, विभिन्न बैठकों में भाग लेते और फिर अपने देश वापस चले जाते। मोदी सरकार में यह परंपरा बदल गई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विदेशी मेहमानों को नई दिल्ली से इतर दूसरे शहरों में बुलाना शुरू किया और खासकर उनका जोर गुजरात का अहमदाबाद रहा है। दरअसल, मोदी प्रधानमंत्री बनने से पहले करीब 14 साल तक गुजरात के मुख्यमंत्री रहे थे। गुजरात में किए गए विकास कार्यों की बदौलत ही देशभर में उन्हें विकास पुरुष के रूप में देखा जाने लगा और 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रधानमंत्री पद के प्रत्याशी के रूप में उनका चेहरा आगे किया तो पार्टी को बंपर जीत मिल गई।

विदेशी मेहमानों को गुजरात बुलाने का मकस तो समझिए
प्रधानमंत्री मोदी की रणनीति रही है कि वो विदेशी मेहमानों को गुजरात बुलाकर दिखाया जाए कि उनका नेतृत्व पाने के कारण यह प्रदेश विकास की पटरी पर किस तरह सरपट दौड़ा है। इससे विदेशी मेहमानों को बिना कुछ कहे अहसास करवा दिया जाता है कि मोदी की उनसे क्या अपेक्षाएं होंगी। दरअसल, मोदी सरकार की योजना राज्य सरकारों को अपने दम पर विदेशों से निवेश आकर्षित करने को प्रेरित करने की रही है। इस लिहाज से देखें तो विदेशी मेहमानों को नई दिल्ली से इतर देश के अन्य शहरों में बुलाना फायदे की रणनीति है, लेकिन दूसरा पक्ष यह है कि 2018 से अब तक कम-से-कम 18 राष्ट्र प्रमुख और सरकार प्रमुख गुजरात ही आए हैं। इनमें चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप, तत्कालीन जापानी प्रधानमंत्री शिंजो आबे, तत्कालीन इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, पुर्तगाल के प्रधानमंत्री एंटोनियो कोस्टा और अब यूनाइटेड किंगडम (UK) के प्रधानमंत्री बॉरिस जॉनसन आदि शामिल हैं।

वाराणसी भी बुलाए जाते हैं कुछ विदेशी मेहमान
गुजरात के शहरों के अलावा अगर किसी और शहर में विदेशी मेहमानों का पदार्पण हुआ तो वो है वाराणसी- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संसदीय क्षेत्र। वहां शिंजो आबे के अलावा फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों और अब मॉरिशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जुगनाथ समेत कई विदेशी मेहमानों का स्वागत किया गया। खास बात यह हैकि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात या फिर वाराणसी के दौरे पर ही विदेशी मेहमानों के साथ रहते हैं। अगर कोई विदेशी मेहमान देश के अन्य शहरों का दौरा करे तो उनके साथ पीएम मोदी को नहीं देखा जाता है। मसलन, कुछ विदेशी नेता बोध गया गए लेकिन उन्हें प्रधानमंत्री मोदी का साथ नहीं मिला। देश के ज्यादातर राज्य तो विदेशी मेहमानों की आवक से बिल्कुल अछूते ही हैं।

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