कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केन्द्र, ढोलिया, बेमेतरा में बेल के पौधे तैयार किये जा रहे हैं जहाँ पर मनरेगा योजना के तहत अलग-अलग ग्राम पंचायत के किसानों को लगभग 30 हजार पौधे निःशुल्क वितरित किये जा चुके हैं।  बेल भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में मूल रूप से पाया जाने वाला एक दुर्लभ प्रजाति का मीठा, सुगंधित फल है। जिसे बंगालक्वीन्स, गोल्डन एप्पल, जापानीस बीटरऑरेंज, स्टोन एप्पल या वुड भी कहा जाता है। इसके फल को आमतौर पर ताजा, सूखे, रस, शरबत के रूप में उपयोग करते हैं इसके अलावा फल के गूदे से कैंडी, टॉफी, नेक्टर, पाउडर, मुरब्बा, बेल पना आदि बनाया जाता है। इसकी पत्तियों तथा छोटे नर्म तने को हरे सलाद के रूप में उपयोग किया जाता है। छोटे नर्म तने को हरे सलाद के रूप में उपयोग किया जाता है। बेल खाने में जितना स्वादिष्ट होता है, उतना ही स्वास्थ्य के लिए फायदेमंद भी होता है। इस फल में विटामिन और पोषक तत्वों की भरमार होती है। इसमें मौजूद टैनिन और पेक्टिन मुख्य रूप से डायरिया और पेचिश के इलाज में अहम भूमिका निभाते हैं। इसके फल में विटामिन सी, कैल्शियम, फाइबर, प्रोटीन और आयरन भी भरपूर मात्रा में मिलते हैं।

बेल की पत्ती, छाल, जड़, फल तथा बीज को परम्परागत औषधि के रूप में बहुत से बीमारियों के उपचार के लिए उपयोग किया जाता है। बेल हिन्दुओं के अनुष्ठानों में महत्व रखता है। इसकी पत्ती तथा फल भगवान शिव जी की पूजा में भी मुख्य भूमिका निभाते हैं।
कलमी पौधे 3-4 वर्षों में फलना प्रारंभ हो जाते हैं जबकि बीजू पेड़ 7-8 वर्ष में फल देते हैं। प्रति वर्ष फलों की संख्या वृक्ष के आकार के साथ बढ़ती रहती है। 10-15 वर्ष पूर्ण विकसित वृक्ष से 100 से 150 फल प्राप्त किये जा सकते हैं। फल का बाजार  मूल्य 50 से 80 रूपये प्रति किलोग्राम प्राप्त किया जा सकता है। प्रति हेक्टेयर 2 लाख 50 हजार रूपये औसत आय प्राप्त किया जा सकता है। बेल की खेती करके कम खर्च में अच्छी आमदनी प्राप्त की जा सकती है।इसे खाली पड़ी परती, रेतीली भूमि में लगाकर आय प्राप्त किया जा सकता है। इसकी खेती को जानवरों द्वारा कम नुकसान पहुँचाया जाता है। बेल बेमेतरा जिले में खाली पड़ी भूमि के लिए उपयुक्त और अच्छी फसल है। इसकी खेती करके अतिरिक्त आय प्राप्त किया जा सकता है।

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