प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी सुराजी गांव योजना के तहत नरवा, गरवा घुरवा व बाड़ी के विकास से गांवों की तस्वीर बदल रही है। भूगर्भीय जल स्रोतों के संरक्षण व संवर्धन की दिशा में नरवा कार्यक्रम के जरिए जिले में ठोस प्रयास किए जा रहे हैं, जिससे कृषि एवं कृषि संबंधित गतिविधियों को बढ़ावा मिल सके। वर्षा के जल पर निर्भर किसानों के लिए यह कार्यक्रम काफी फायदेमंद साबित हो रहा है। इसके तहत जिले में कुल 45 नरवा (नालों) का चिह्नांकन कर कुल 754 कार्य मनरेगा से और वन विभाग की कैम्पा मद से 2789 यानी कुल 3543 नरवा की स्वीकृति मिली है।

नरवा विकास कार्यक्रम के तहत वर्ष 2019-20 एवं 2020-21 में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना और वन विभाग के कैम्पा मद से कुल कार्य स्वीकृत किए गए हैं, जिनमें मुख्यतः डबरी निर्माण के 40, बोल्डर चेक के 400, गेबियन स्ट्रक्चर के 90, डाइक के 52, चेकडैम के 10, ब्रशवुड स्ट्रक्चर के 800 कार्य स्वीकृत हैं। इनके अलावा स्टॉप डेम के 15, भूमि सुधार के 112, नाला गहरीकरण के 10 और कुआं निर्माण के 20 कार्य शामिल हैं। इसी तरह वन क्षेत्र में कैम्पा योजनांतर्गत कुल 14 नरवा का चयन किया गया है जिनमें वन विभाग के माध्यम से निर्माण कार्य किए जा रहे हैं। इनका लगभग 75 फीसदी कार्य पूर्ण हो चुके हैं। स्थानीय सर्वेक्षण एवं तकनीकी अमलों के अध्ययन के अनुसार नरवा विकास के चलते जिले में लगभग 15 प्रतिशत उपचारित क्षेत्रों में जल स्तर में वृद्धि दर्ज की गई है। साथ ही एरिया ट्रीटमेंट के क्रियान्वयन से कृषकों को सिंचाई सुविधा का लाभ मिल रहा है। इससे वन क्षेत्र में मृदा संरक्षण को भी बढ़ावा मिल रहा है, क्योंकि नाले के अभाव में भूमि का कटाव एवं क्षरण की अधिक संभावनाएं होती हैं। वॉटरशेड परिकल्पना के आधार पर रिज टू वैली विधि से उपचार करने पर मृदा संरक्षण में बढ़ोत्तरी हो रही है, वहीं प्रारम्भिक चरण में मृदा अपरदन व कटाव से होने वाले नुकसान को नियंत्रण करने में सफलता मिली है। इस तरह नरवा कार्यक्रम के माध्यम से उपचारित नालों में अब पर्याप्त मात्रा में पानी रहने से किसानों को उतेरा और रबी की फसल लेने में सुविधा होने लगी है। जिले में नरवा विकास कार्यक्रम से भू-जल संरक्षण एवं संवर्धन हो रहा है, वहीं क्षेत्र में पानी की समस्या अब नहीं होती है और खेतों में दोहरी फसल लेने से किसानों की आमदनी में भी इजाफा हो रहा हैै।

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