जिले के विकासखण्ड मनेन्द्रगढ़ के ग्राम ताराबहरा की कृषि सखी सोनकली ने अपने सपनों को आत्मनिर्भरता के पंख दिए हैं। जैविक कृषि को अपनाकर स्वस्थ धरती और स्वस्थ जीवन शैली की ओर कदम बढ़ाया है। इसके साथ ही बाड़ी में सब्जियां उगाकर और बकरी व मुर्गीपालन कर आमदनी का दूसरा रास्ता भी खुद ही तैयार कर लिया है। इस पूरे क्रम में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन बिहान की टीम सोनकली के मददगार रहे। स्व सहायता समूह से जोड़कर बिहान ने सोनकली को स्वावलंबी बनने की राह दिखाई। छत्तीसगढ़ शासन द्वारा संचालित सुराजी गांव एवं गोधन न्याय जैसी योजनाओं के माध्यम से जैविक कृषि को प्रोत्साहन स्वस्थ भूमि और जीवनशैली के साथ ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था में आजीविका का सरल और सशक्त जरिया बना है।
बिहान ने बताया जैविक कृषि का मोल
विकासखण्ड मनेन्द्रगढ़ के ग्राम ताराबहरा में वैष्णो देवी स्व-सहायता समूह के सभी सदस्यों की प्रमुख आजीविका कृषि है। बिहान योजना से जुड़ने के बाद समूह की सचिव सोनकली ने कृषि सखी के रूप में अपना कार्य प्रारम्भ किया और आज जैविक खेती अपनाकर मुनाफा कमा रही है, साथ ही अपने जमीन को भी उपजाऊ बना रही है। कुछ वर्ष पहले उनके घर में परम्परागत खेती होती थी, प्रचलित आधार पर बुवाई की जाती थी इसके साथ ही साथ रासायनिक खाद व कीटनाशक का उपयोग किया जाता था। जिससे न केवल लागत खर्च बढ़ जाता था, भूमि को भी नुकसान हो रहा था। बिहान से जुड़ने के बाद संवहनीय कृषि कार्यक्रम अंतर्गत सोनकली दीदी को कृषि सखी का प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण में जैविक खाद का उपयोग किस तरह किया जाए एवं बुवाई कैसे किया जाए, इसे व्यावाहरिक तरीके से बताया गया साथ ही साथ जैविक खेती करने को प्रेरित किया गया।
जैविक कृषि, सब्जी उत्पादन और मुर्गी-बकरीपालन से सोनकली को अब तक 90 हजार रुपये की आय जैविक कृषि के फायदों की जानकारी से प्रभावित होकर सोनकली दीदी ने समूह से आरएफ की राशि को ऋण के रूप में लेकर अपने लगभग 2.5 एकड़ कृषि योग्य भूमि में सब्जी व श्री विधि से धान की खेती की। साथ ही जैविक खाद व कीटनाशक का प्रयोग किया। नतीजतन जैविक खेती करने से अब लागत कम आ रही है और मुनाफा बढ़ गया है। इस तरह कृषि सखी सोनकली को धान बेचकर लगभग 70 हजार रूपये की आय हुई है। बाड़ी में उगाई सब्जी-भाजी के विक्रय से भी लगभग 10 हजार रुपये की आमदनी हुई है। इसके अलावा बकरी व मुर्गी पालन से भी इन्हें 10 हजार तक की आय प्राप्त हो जाती है। कृषि सखी बन कर सोनकली दीदी अपने ग्राम में एक अलग पहचान स्थापित कर समूह के दीदियों की आदर्श बन चुकी है। सोनकली अब अपने ग्राम की अन्य महिला किसानों को जैविक खेती करने हेतु प्रेरित कर रही है ताकि वो भी ज्यादा से ज्यादा मुनाफा प्राप्त कर अपने खेत की मृदा को उपजाऊ बनाए।