कोरोना काल में भले ही मंदिरों में भक्तों की भारी भीड़ न उमड़ रही हो लेकिन शिव पूजन के लिए भक्त लालायित नज़र आ रहे हैं। सावन का महीना सभी महीनों में श्रेष्ठ माना जाता है और इसमें भक्तजन पूरी श्रद्धा भाव से शिव जी को प्रसन्न रखने के लिए प्रयासरत रहते हैं। कोई बेल पत्र से शिव जी की आराधना करता है तो कोई भांग और धतूरे का भोग लगाता है। यही नहीं चारों और भक्तों की भक्ति अलग-अलग रूपों में दिखाई देती है। आपमें से ज्यादातर लोग शिव पूजन में बेल पत्र, भांग के पत्ते या फिर अन्य फूल और पाटों जैसे दूर्वा घास या मदार से शिव पूजन करते हैं, लेकिन कभी आपने सोचा है कि शिव जी को तुलसी की पत्तियां या तुलसी दल क्यों नहीं चढ़ाया जाता है?
पुराणों के अनुसार शिव जी को तुलसी दल चढाने से पुण्य की जगह पाप मिलता है और शिव जी क्रोधित हो जाते हैं। तुलसी जैसी पवित्र पत्तियों को शिव जी पर अर्पित करने का मतलब उन्हें नाराज़ करना है ?
पौराणिक कथा यह है कि पूर्व जन्म में तुलसी का नाम वृंदा था और वह जालंधर नाम के राक्षस की पत्नी थी। जालंधर का जन्म शिव जी के अंश के रूप में ही हुआ था लेकिन अपने बुरे कृत्यों की वजह से वह राक्षस कुल में जन्मा था। जलंधर एक अत्यंत क्रूर राक्षस था और सभी उससे त्रस्त थे लेकिन वृंदा एक पति व्रत स्त्री थी और वह अपने पति जालंधर के मोह पाश में बंधी हुई थी । वृंदा की पतिव्रता प्रवृत्ति की वजह से कोई भी जालंधर की हत्या नहीं कर पा रहा था। इसलिए जन कल्याण के लिए एक दिन भगवान विष्णु ने जलंधर का रुप धारण किया और उन्होंने वृंदा की पतिव्रता धर्म को तोड़ दिया। जब वृंदा को यह पता चला कि भगवान विष्णु ने उनका पतिव्रत धर्म भंग किया है, तो उन्होंने विष्णु जी को श्राप दिया कि आप पत्थर के बन जाएंगे।
उस समय विष्णु जी ने वृंदा यानी तुलसी को बताया कि वो उसका जालंधर राक्षस से बचाव कर रहे थे और उन्होंने भी वृंदा को श्राप दिया कि वो लकड़ी की बन जाए। इसके पश्चात् शिव जी ने जालंधर राक्षस का वध कर दिया और विष्णु जी के श्राप के बाद वृंदा कालांतर में तुलसी का पौधा बन गईं। ऐसी मान्यता है कि तुलसी श्रापित हैं और शिव जी द्वारा उनके पति का वध हुआ है इसलिए शिव पूजन में तुलसी का इस्तेमाल करने से शुभ फलों की प्राप्ति नहीं होती है।