जब वाराणसी का लोकप्रिय नाम बनारस है तो इसका आधिकारिक नाम वाराणसी क्यों हो गया. इसका काशी नगरी से क्या रिश्ता है. ये भी बहस होती थी कि दुनियाभर में इस शहर को बनारस के नाम से जानते हैं तो आधिकारिक तौर पर इस नाम पर यहां ना तो स्टेशन है और ना ही कोई चीज. ले-देकर बस यहां के विश्वविद्यालय का नाम जरूर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय जरूर है.

हालांकि ये रोचक बात है कि मुगलों और अंग्रेजों के जमाने में जब इस शहर का आधिकारिक नाम बनारस ही था तो ये वाराणसी कैसे हो गया. इसका क्या इतिहास है. वैसे तो इस प्राचीन शहर के कई नाम हैं.

वाराणसी में वाराणसी कैंट और काशी के नाम से दो रेलवे स्टेशन भी हैं लेकिन बनारस के नाम से कोई स्टेशन भी नहीं. लंबे समय से हो रही इस मांग के बाद शहर के मड़वाडीह नाम से बने स्टेशन का नाम अब बनारस कर दिया गया है. इसके साथ बनारस के नाम को एक खास मान्यता भी सरकार ने दे दी है.

वाराणसी नाम कैसे आया

वाराणसी भी प्राचीन नाम है. इसका उल्लेख भी बौद्ध जातक कथाओं और हिंदू पुराणों में है. महाभारत में बार बार इसका जिक्र हुआ है. दरअसल इसका पाली भाषा में जो नाम था वो था बनारसी. जो टूटते फूटते बनारस के नए नाम में आया. ये शहर बनारस के नाम से अधिक जाना जाता है. बेशक आधिकारिक तौर पर अब इसका नाम वाराणसी है.

आजादी के बाद नाम वाराणसी हुआ

मुगलों के शासन और फिर अंग्रेजों के शासनकाल में इसका नाम बनारस ही रहा लेकिन आजाद भारत में इसका आधिकारिक नाम हुआ वाराणसी. कोई भी बनारसी यही कहेगा कि चूंकि इस शहर के एक ओर वरुणा नदी है, जो उत्तर में गंगा में मिल जाती है और दूसरी ओर असि नदी. लिहाजा इन नदियों के बीच होने के कारण इसका नाम वाराणसी कहलाया.

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